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शालीमार बाग़ के जैन मंदिर में टूटा प्रवेश द्वार: सीएम रेखा गुप्ता के हस्तक्षेप से हुआ समाधान

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Last updated: July 22, 2025 7:36 pm
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Published July 22, 2025
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शालीमार बाग़
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दिल्ली के शालीमार बाग़ इलाके में बीते शनिवार को एक ऐसी घटना घटी जिसने न केवल जैन समाज की भावनाओं को आहत किया, बल्कि प्रशासन की कार्यशैली पर भी सवाल खड़े कर दिए। श्री दिगंबर जैन मंदिर, जो यहां की एक प्रमुख धार्मिक आस्था का केंद्र है, उसके मुख्य प्रवेश द्वार को लोक निर्माण विभाग (PWD) की टीम ने अचानक तोड़ दिया।

Contents
शालीमार बाग़: मंदिर परिसर में फैली हलचलरेखा गुप्ता की गैर-मौजूदगी, लेकिन अगली सुबह त्वरित कार्रवाईसार्थक संवाद, समाधान की ओर बढ़ा क़दमस्थानीय लोगों में संतोषसमाज की परिपक्वता और उदाहरणक्या यह सिर्फ़ एक प्रशासनिक चूक थी?निष्कर्ष

यह घटना दोपहर के समय घटी, जब बड़ी संख्या में श्रद्धालु मंदिर परिसर में मौजूद थे। मंदिर का यह प्रवेश द्वार केवल एक निर्माण नहीं था, बल्कि धार्मिक प्रतीक भी था, जिससे लोगों की भावनाएं गहराई से जुड़ी थीं।

स्थानीय लोगों का कहना है कि मंदिर का यह गेट वर्षों से यहां स्थापित था और इसके खिलाफ किसी भी प्रकार की कोई शिकायत या कानूनी बाधा नहीं थी। न ही किसी प्रकार की नोटिस मंदिर प्रशासन को दी गई थी। ऐसे में यह कार्रवाई न केवल तर्कहीन लगी, बल्कि पूरे समुदाय को आहत कर गई।

शालीमार बाग़: मंदिर परिसर में फैली हलचल

शनिवार की दोपहर अचानक जब PWD की टीम मशीनों के साथ मंदिर परिसर में पहुंची और बिना किसी सूचना के गेट को हटाने लगी, तो वहां मौजूद श्रद्धालु हक्के-बक्के रह गए। देखते ही देखते मंदिर का मुख्य द्वार ध्वस्त कर दिया गया। यह स्थिति किसी के लिए भी असहज और अप्रत्याशित थी।

स्थानीय जैन समुदाय ने इस पूरे मामले में संयम और शांति से प्रतिक्रिया दी। न कोई नारेबाज़ी, न कोई उग्र प्रदर्शन — बस एक शांत लेकिन सख़्त असहमति। समुदाय ने अपनी धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचने की बात करते हुए इस मुद्दे को स्थानीय प्रशासन और जनप्रतिनिधियों के सामने रखने का निर्णय लिया।

रेखा गुप्ता की गैर-मौजूदगी, लेकिन अगली सुबह त्वरित कार्रवाई

इस पूरे प्रकरण में एक और दिलचस्प तथ्य यह था कि जिस दिन यह घटना घटी, उसी दिन दिल्ली विधानसभा की सदस्य और मुख्यमंत्री प्रतिनिधि रेखा गुप्ता का जन्मदिन भी था। वे उस समय क्षेत्र में मौजूद नहीं थीं और शायद इसी कारण उन्हें तत्काल जानकारी नहीं मिल सकी।

लेकिन जैसे ही उन्हें स्थिति की गंभीरता का अंदाज़ा हुआ, उन्होंने अगले ही दिन सुबह समुदाय के प्रतिनिधियों से बात की और स्वयं मंदिर स्थल का दौरा किया। रेखा गुप्ता ने न सिर्फ स्थिति का जायज़ा लिया, बल्कि PWD अधिकारियों से बातचीत कर पूरे घटनाक्रम की जानकारी ली और तत्काल दो बातें स्पष्ट कीं:

1. यह कार्रवाई बिना धार्मिक भावनाओं को ध्यान में रखे की गई थी, जो दुर्भाग्यपूर्ण है।
2. मंदिर के गेट का पुनर्निर्माण प्राथमिकता के आधार पर कराया जाएगा।

सार्थक संवाद, समाधान की ओर बढ़ा क़दम

रेखा गुप्ता ने मंदिर समिति और स्थानीय लोगों को आश्वस्त किया कि गेट के पुनर्निर्माण का कार्य जल्द शुरू किया जाएगा। उन्होंने सार्वजनिक रूप से यह भी कहा कि “धार्मिक स्थल हमारी संस्कृति और समुदाय की आत्मा होते हैं। किसी भी प्रकार की सरकारी कार्रवाई में इन बातों का ख्याल रखना आवश्यक है।” इस बयान ने न केवल जैन समाज को राहत दी, बल्कि राजनीतिक नेतृत्व की संवेदनशीलता का भी परिचय दिया।

हालांकि, मंदिर समिति की ओर से यह भी स्पष्ट किया गया कि गेट के पुनर्निर्माण में लगने वाला खर्च मंदिर के दान-पात्र से ही वहन किया जाएगा। इससे यह स्पष्ट होता है कि समाज न केवल आत्मनिर्भर है, बल्कि अपने धार्मिक कार्यों में सरकार की मदद लेने से पहले स्वयं आगे आना पसंद करता है।

स्थानीय लोगों में संतोष

घटना के कुछ ही दिनों में स्थिति नियंत्रण में आ गई और पुनर्निर्माण की दिशा में क़दम बढ़ा दिए गए। स्थानीय लोगों और श्रद्धालुओं ने रेखा गुप्ता के हस्तक्षेप की सराहना की। कई लोगों ने कहा कि यह सिर्फ़ एक गेट का पुनर्निर्माण नहीं है, बल्कि प्रशासन और जनता के बीच भरोसे की बहाली भी है।

एक स्थानीय बुज़ुर्ग श्रद्धालु का कहना था, “जो हुआ वह दुःखद था, लेकिन जिस तरह से रेखा गुप्ता जी ने तुरंत हस्तक्षेप किया और समाधान दिया, वह क़ाबिले-तारीफ़ है। अब उम्मीद है कि गेट पहले से भी सुंदर रूप में वापस बनेगा।”

समाज की परिपक्वता और उदाहरण

इस घटना से यह भी सामने आया कि जैन समाज किस तरह अपनी परिपक्वता और शांति बनाए रखते हुए भी प्रभावशाली तरीके से अपने मुद्दे उठा सकता है। आज के दौर में जब हर असहमति एक उग्र आंदोलन का रूप ले लेती है, ऐसे में यह एक उदाहरण है कि अहिंसा, संवाद और शालीनता से भी बदलाव लाया जा सकता है।

क्या यह सिर्फ़ एक प्रशासनिक चूक थी?

इस पूरे मामले ने एक बड़ा प्रश्न खड़ा। क्या धार्मिक स्थलों को लेकर प्रशासन की ओर से पर्याप्त सतर्कता बरती जा रही है? मंदिर के गेट को तोड़ने से पहले किसी भी प्रकार की कानूनी जानकारी या चेतावनी मंदिर प्रशासन को नहीं दी गई थी। यह न केवल एक प्रशासनिक चूक है, बल्कि धार्मिक स्वतंत्रता के संदर्भ में संवैधानिक भावना के भी विपरीत है।

भविष्य में ऐसी घटनाओं को टालने के लिए ज़रूरी है कि किसी भी निर्माण या तोड़फोड़ से पहले संवेदनशील क्षेत्रों की पहचान की जाए और स्थानीय समुदाय से संवाद किया जाए।

निष्कर्ष

शालीमार बाग़ के श्री दिगंबर जैन मंदिर के टूटे गेट का मामला एक दुखद शुरुआत से शुरू हुआ, लेकिन राजनीतिक और सामाजिक सहयोग से यह संतोषजनक समाधान तक पहुँचा। रेखा गुप्ता जी की तत्परता और जैन समुदाय की परिपक्व प्रतिक्रिया ने यह दिखाया कि जब नेता और जनता मिलकर काम करें तो हर समस्या का समाधान संभव है।

अब जबकि पुनर्निर्माण की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है और मंदिर का गेट श्रद्धा और सम्मान के साथ फिर से स्थापित होगा, यह घटना एक उदाहरण बन गई है। एक ऐसी मिसाल जो दिल्ली के प्रशासन, नेताओं और धार्मिक समुदायों के बीच समन्वय को दर्शाती है।

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