SSC Protest: 1 अगस्त 2025 को दिल्ली के जंतर मंतर पर हजारों SSC अभ्यर्थी, शिक्षक भर्ती के उम्मीदवार और युवा एकजुट हुए। यह कोई साधारण प्रदर्शन नहीं था, बल्कि लाखों युवाओं की टूटी उम्मीदों और लूटे गए भविष्य की कहानी थी। जहां एक तरफ संसद में मानसून सत्र चल रहा था, वहीं जंतर मंतर पर युवा अपनी आवाज बुलंद कर रहे थे। उनकी मांग थी – पारदर्शी भर्ती, नौकरी का हक और सिस्टम में सुधार।
31 जुलाई की बर्बरता: लोकतंत्र पर लाठीचार्ज
31 जुलाई को “दिल्ली चलो” आंदोलन के दौरान शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे छात्रों और शिक्षकों पर पुलिस ने बेरहमी से लाठीचार्ज किया। बिना किसी चेतावनी के डंडे बरसाए गए। सबसे दुखद यह था कि महिला प्रदर्शनकारियों को भी नहीं बख्शा गया।
- एक महिला अभ्यर्थी ने बताया, “पुलिस ने हमें घसीटा और पीटा, जैसे हम अपराधी हों।”
- कुछ पुलिसकर्मियों ने तो यहां तक कहा, “मर जाते तो अच्छा होता।”
- यह घटना लोकतंत्र के लिए एक काला धब्बा थी।
1 अगस्त: फिर उठी न्याय की आवाज
31 जुलाई की बर्बरता के बावजूद, 1 अगस्त को हजारों युवा फिर जंतर मंतर पर जुटे। गुस्सा और दर्द उनके चेहरों पर साफ दिख रहा था, लेकिन वे शांतिपूर्ण तरीके से अपनी मांगें रख रहे थे। उनकी प्रमुख मांगें थीं:
- TCS को दोबारा परीक्षा एजेंसी बनाया जाए: अभ्यर्थियों का कहना है कि TCS के समय परीक्षाएं पारदर्शी और तकनीकी रूप से सही होती थीं। नई निजी एजेंसियों ने प्रक्रिया को अव्यवस्थित कर दिया है।
- रद्द चयन पोस्ट को बहाल करें: हाल ही में phase 13 selection posts बिना कारण रद्द कर दी गईं। लाखों उम्मीदवारों की मेहनत बेकार चली गई।
- 27-28 लाख खाली पदों पर भर्ती शुरू करें: इतनी बड़ी संख्या में रिक्तियां होने के बावजूद भर्ती प्रक्रिया ठप है।
तकनीकी खामियां: सिस्टम का मज़ाक
परीक्षाओं में तकनीकी समस्याओं ने अभ्यर्थियों का भरोसा तोड़ा है। कई छात्रों ने बताया:
- परीक्षा केंद्रों पर कंप्यूटर, माउस या स्क्रीन काम नहीं कर रहे थे।
- एक छात्रा ने कहा, “सेंटर पर सिस्टम खराब था। स्टाफ ने कहा, ‘भूल जाओ, हो जाता है।’ और हमें बाहर कर दिया।”
- यह प्रणाली किसी लॉटरी से कम नहीं, जहां भाग्य तय करता है कि परीक्षा होगी या नहीं।
SSC Protest: गरीब छात्रों के साथ भेदभाव: दूर के परीक्षा केंद्र
कई अभ्यर्थियों को परीक्षा केंद्र उनके घर से सैकड़ों किलोमीटर दूर अलॉट किए गए। एडमिट कार्ड भी आखिरी समय पर मिले, जिससे यात्रा करना असंभव हो गया। जो संसाधन-संपन्न हैं, वे फ्लाइट या ट्रेन से जा सकते हैं, लेकिन गरीब और मध्यम वर्ग के छात्रों के लिए यह असंभव है। क्या सरकार की नीतियां सिर्फ अमीरों के लिए हैं?
सरकार की चुप्पी और राजनीति का दोहरा चेहरा
प्रदर्शनकारी युवाओं ने कहा, “चुनाव के समय सरकार हर गांव-गली में वोट मांगने आती है, लेकिन जब नौकरी और पारदर्शिता की बात आती है, तो हम ‘भीड़’ बन जाते हैं।” एक शिक्षक ने चेतावनी दी कि अगर सरकार अब भी नहीं जागी, तो वे संसद भवन के सामने भूख हड़ताल करेंगे।
1 अगस्त को दोपहर 3:30 बजे पुलिस ने फिर प्रदर्शनकारियों को हटाने की कोशिश की। कुछ को जबरदस्ती गाड़ियों में भरकर नरेला ले जाया गया और दूर छोड़ दिया गया। यह साफ दर्शाता है कि सरकार को आंदोलन से नहीं, अपनी छवि की चिंता है।
यह सिर्फ आंदोलन नहीं, भविष्य की लड़ाई है
यह प्रदर्शन केवल लाठीचार्ज के खिलाफ नहीं था। यह उस सिस्टम के खिलाफ था, जो युवाओं को शिक्षा तो देता है, लेकिन रोजगार नहीं। यह उन महिलाओं की आवाज थी, जिन्हें सड़कों पर पीटा गया। यह उन गरीब छात्रों का गुस्सा था, जिन्हें परीक्षा तक पहुंचने का मौका नहीं मिला। और यह उन लाखों युवाओं का प्रतिरोध था, जिन्हें हर साल नया धोखा मिलता है।
प्रदर्शनकारियों ने कहा, “हमें जबरदस्ती भगाया जा रहा है, लेकिन हमारी लड़ाई खत्म नहीं हुई।” सरकार को समझना होगा कि यह देश सिर्फ वोट बैंक नहीं है। यह मेहनत करने वाले, सपने देखने वाले युवाओं का देश है, जो एक पारदर्शी और न्यायपूर्ण भारत चाहते हैं।
सवाल जो बाकी हैं
- नौकरियां कब आएंगी?
- क्या सरकार युवाओं की आवाज सुनेगी?
- या फिर अगले चुनाव में हार का इंतजार कर रही है?
SSC अभ्यर्थियों का यह आंदोलन सिर्फ एक प्रदर्शन नहीं, बल्कि भारत के भविष्य की लड़ाई है। क्या सरकार इस आवाज को सुनेगी, या फिर लाठियों से जवाब देगी?