1 अगस्त 2025, नई दिल्ली: जंतर मंतर, जो भारत में सामाजिक और राजनीतिक आंदोलनों का प्रतीक स्थल रहा है, एक बार फिर एक भावनात्मक और शक्तिशाली विरोध प्रदर्शन का गवाह बना। असम से आए बंगाली मुस्लिम समुदाय ने अपनी आवाज़ बुलंद करते हुए सरकार पर उनकी पहचान, नागरिकता और जमीन के अधिकारों को निशाना बनाने का आरोप लगाया। यह प्रदर्शन केवल जमीन की लड़ाई नहीं, बल्कि सम्मान, समानता और इंसाफ की मांग का प्रतीक था।
विरोध प्रदर्शन का कारण: बंगाली मुस्लिमों पर भेदभाव का आरोप
प्रदर्शनकारियों का कहना है कि असम में हिमंत बिस्वा सरमा के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार उनके समुदाय को जानबूझकर निशाना बना रही है। उनके प्रमुख आरोप इस प्रकार हैं:
- जमीनों पर बुलडोजर: बंगाली मुस्लिमों की दशकों पुरानी जमीनों को “अवैध कब्जा” बताकर खाली करवाया जा रहा है।
- नागरिकता पर सवाल: वैध दस्तावेज़ होने के बावजूद उन्हें “अवैध बांग्लादेशी घुसपैठिया” करार दिया जा रहा है।
- सांप्रदायिक भेदभाव: प्रदर्शनकारियों का दावा है कि यह कार्रवाई धर्म और भाषा के आधार पर भेदभाव का हिस्सा है।
एक प्रदर्शनकारी नेता ने कहा, “हिमंत बिस्वा सरमा की सरकार हमें निशाना बना रही है। हमारी जमीनें छीनी जा रही हैं, हमारे घर उजाड़े जा रहे हैं। यह सांप्रदायिक भेदभाव का स्पष्ट उदाहरण है।”
जंतर मंतर क्यों? असम से दिल्ली तक की यात्रा
असम के विभिन्न जिलों से आए सैकड़ों लोग लंबी यात्रा कर दिल्ली पहुंचे। उनके अनुसार, राज्य सरकार उनकी शिकायतों को अनसुना कर रही है। जंतर मंतर को चुनने का कारण इसका ऐतिहासिक महत्व है, जहां देश भर के लोग अपनी आवाज़ राष्ट्रीय स्तर पर उठाते हैं। यह प्रदर्शन उनकी पीड़ा और संघर्ष को देश के सामने लाने का एक प्रयास था।
लखनऊ से समर्थन: दोहरे मापदंड पर सवाल
प्रदर्शन में लखनऊ से आए एक समर्थक ने सरकार की नीतियों पर तीखा सवाल उठाया। उन्होंने कहा, “चुनाव के समय यही लोग वोट बैंक के रूप में वैध माने जाते हैं। लेकिन जब जमीन खाली करवाने की बारी आती है, तो इन्हें अवैध बांग्लादेशी बता दिया जाता है। यह दोहरा मापदंड क्यों?” यह बयान सरकार की नीतियों में कथित असंगति को उजागर करता है।
एक प्रदर्शनकारी की भावनात्मक अपील: “हमें इंसाफ चाहिए”
प्रदर्शन में शामिल एक अन्य व्यक्ति ने भावुक होकर कहा, “हमें इस बात से फर्क नहीं पड़ता कि सरकार कौन चला रहा है। हमें केवल इंसाफ चाहिए। किसी को उसके धर्म या भाषा के आधार पर निशाना नहीं बनाना चाहिए।” उनकी यह मांग देश में बढ़ते असमान व्यवहार के खिलाफ एक गहरी पीड़ा को दर्शाती है।
सरकार का पक्ष: अवैध कब्जों पर कार्रवाई का दावा
असम सरकार ने इन आरोपों का जवाब देते हुए कहा है कि:
- उनकी कार्रवाई केवल अवैध कब्जों को हटाने के लिए है।
- वैध दस्तावेज़ रखने वालों को कोई खतरा नहीं है।
- किसी समुदाय को निशाना बनाने का कोई इरादा नहीं है।
हालांकि, प्रदर्शनकारी दावा करते हैं कि उनके वैध दस्तावेज़ों को भी नजरअंदाज किया जा रहा है।
व्यापक सवाल: नागरिकता और अधिकारों की बहस
यह प्रदर्शन केवल एक समुदाय की कहानी नहीं, बल्कि कुछ गंभीर सवालों को जन्म देता है:
- नागरिकता का बोझ: क्या नागरिकता साबित करने की जिम्मेदारी केवल नागरिकों पर होनी चाहिए?
- राज्य की शक्ति: क्या सरकार को बिना उचित सुनवाई के लोगों को बेदखल करने का अधिकार होना चाहिए?
- राजनीतिक भेदभाव: क्या धर्म और भाषा के आधार पर नीतियां बनाना उचित है?
निष्कर्ष: क्या दिल्ली की आवाज़ संसद तक पहुंचेगी?
1 अगस्त 2025 को जंतर मंतर पर हुआ यह विरोध प्रदर्शन दशकों से दबे हुए डर और असुरक्षा का परिणाम था। यह केवल जमीन की लड़ाई नहीं, बल्कि पहचान, सम्मान और समानता की मांग थी। अब सवाल यह है कि क्या यह आवाज़ संसद और न्याय व्यवस्था तक पहुंचेगी? क्या भारत का लोकतंत्र इन आवाज़ों को सुनेगा या उन्हें अनसुना कर देगा?