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ठाणे के स्कूल में छात्राओं के साथ अमानवीय व्यवहार, मासिक धर्म जांच के नाम पर कपड़े उतरवाए

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Last updated: July 10, 2025 8:32 pm
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Published July 10, 2025
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ठाणे
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महाराष्ट्र के ठाणे जिले के शाहपुर तालुका में एक ट्रस्ट द्वारा संचालित स्कूल में 9 जुलाई 2025 को हुई एक घटना ने न केवल शिक्षा के मंदिर की गरिमा को तार-तार किया, बल्कि मानवता और नैतिकता पर भी गहरा सवाल खड़ा कर दिया। स्कूल के बाथरूम में खून के धब्बे मिलने के बाद प्रिंसिपल और कर्मचारियों ने जो कदम उठाया, वह किसी त्रासदी से कम नहीं था।

Contents
प्रोजेक्टर पर खून के धब्बों की तस्वीरेंअभिभावकों का आक्रोश और पुलिस कार्रवाईमासिक धर्म: प्राकृतिक प्रक्रिया या अपमान का बहाना?सामाजिक और कानूनी सवालनिष्कर्ष

5वीं से 10वीं कक्षा की मासूम छात्राओं को न केवल अपमानित किया गया, बल्कि उनकी निजता का भी घोर उल्लंघन हुआ। इस मामले में स्कूल की प्रिंसिपल और एक परिचारिका को गिरफ्तार किया गया है, जबकि छह लोगों के खिलाफ यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया गया है।

Table of Contents

Toggle
  • प्रोजेक्टर पर खून के धब्बों की तस्वीरें
  • अभिभावकों का आक्रोश और पुलिस कार्रवाई
  • मासिक धर्म: प्राकृतिक प्रक्रिया या अपमान का बहाना?
  • सामाजिक और कानूनी सवाल
  • निष्कर्ष

प्रोजेक्टर पर खून के धब्बों की तस्वीरें

मंगलवार को ठाणे जिले के शाहपुर स्कूल के बाथरूम में खून के धब्बे देखे गए। इसके बाद प्रिंसिपल ने बिना किसी संवेदनशीलता या जांच के यह निष्कर्ष निकाल लिया कि यह किसी छात्रा के मासिक धर्म की वजह से हुआ होगा। इसके बाद जो हुआ, वह अकल्पनीय था। 5वीं से 10वीं कक्षा की सभी छात्राओं को स्कूल के सभागार में बुलाया गया। वहां प्रोजेक्टर पर बाथरूम के फर्श पर मौजूद खून के धब्बों की तस्वीरें दिखाई गईं, जिन्हें हाउसकीपिंग स्टाफ ने खींचा था।

छात्राओं से सवाल किया गया, “किसे मासिक धर्म है?” डर और शर्मिंदगी के माहौल में कुछ लड़कियों ने हिम्मत कर हाथ उठाया। उनके नाम, अंगूठे के निशान और अन्य जानकारी नोट की गई। लेकिन यह सिलसिला यहीं नहीं रुका। जिन छात्राओं ने कहा कि उन्हें मासिक धर्म नहीं है, उन्हें एक-एक कर बाथरूम ले जाया गया, जहां एक परिचारिका ने उनके कपड़े उतरवाकर उनकी जांच की। इस दौरान, एक छात्रा के अंतर्वस्त्र में सैनिटरी नैपकिन पाया गया, जिसके बाद प्रिंसिपल ने उसे अन्य छात्राओं और स्टाफ के सामने डांटकर अपमानित किया।

अभिभावकों का आक्रोश और पुलिस कार्रवाई

इस घटना की जानकारी जब अभिभावकों तक पहुंची, तो उनका गुस्सा फट पड़ा। अगले दिन, बुधवार को सैकड़ों अभिभावक स्कूल परिसर में इकट्ठा हो गए और स्कूल प्रशासन के खिलाफ जोरदार विरोध प्रदर्शन किया। उनकी मांग थी कि इस अमानवीय कृत्य के लिए जिम्मेदार प्रिंसिपल और अन्य कर्मचारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए।

ठाणे जिले के शाहपुर पुलिस ने तुरंत कार्रवाई करते हुए प्रिंसिपल और एक परिचारिका को गिरफ्तार कर लिया। इसके अलावा, चार शिक्षकों और दो ट्रस्टियों के खिलाफ पॉक्सो एक्ट के तहत मामला दर्ज किया गया। अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक (ठाणे ग्रामीण) राहुल जाल्टे ने बताया कि यह घटना बेहद गंभीर है और पुलिस इसकी गहन जांच कर रही है।

मासिक धर्म: प्राकृतिक प्रक्रिया या अपमान का बहाना?

मासिक धर्म एक प्राकृतिक प्रक्रिया है, जिसके बारे में जागरूकता और संवेदनशीलता की जरूरत है। लेकिन इस स्कूल ने न केवल छात्राओं की निजता का उल्लंघन किया, बल्कि उन्हें मानसिक और भावनात्मक आघात भी पहुंचाया। एक अभिभावक ने मीडिया को बताया, “छात्राओं को मासिक धर्म के बारे में उचित शिक्षा देने के बजाय, उन्हें शर्मिंदगी और दबाव का शिकार बनाया गया। यह एक घिनौना कृत्य है।

ये भी पढ़े: दिल्ली के रेड लाइट इलाके में सेक्स वर्कर्स और उनके परिवारों के लिए खुला पहला क्लिनिक

सामाजिक और कानूनी सवाल

यह घटना कई गंभीर सवाल उठाती है। स्कूल जैसे शिक्षण संस्थान, जो बच्चों के भविष्य को संवारने की जिम्मेदारी लेते हैं, क्या ऐसी अमानवीय हरकतों का अड्डा बन गए हैं? पॉक्सो एक्ट, जो बच्चों को यौन उत्पीड़न और शोषण से बचाने के लिए बनाया गया है, इस मामले में कितना प्रभावी साबित होगा? और सबसे बड़ा सवाल, क्या इस तरह की घटनाएं समाज में मासिक धर्म से जुड़े कलंक और अज्ञानता को और गहरा नहीं करतीं?

निष्कर्ष

इस घटना ने एक बार फिर शिक्षा संस्थानों में बच्चों की सुरक्षा और संवेदनशीलता की जरूरत को रेखांकित किया है। स्कूलों में मासिक धर्म जागरूकता कार्यक्रम, शिक्षकों के लिए संवेदनशीलता प्रशिक्षण और बच्चों के अधिकारों की रक्षा के लिए सख्त नीतियां लागू करना जरूरी है। साथ ही, अभिभावकों और समाज को भी इस तरह की घटनाओं के खिलाफ एकजुट होकर आवाज उठानी होगी।

यह घटना न केवल ठाणे बल्कि पूरे देश के लिए एक चेतावनी है कि शिक्षा के मंदिरों में बच्चों की गरिमा और निजता की रक्षा सर्वोपरि होनी चाहिए। इस मामले में कठोर कार्रवाई और जागरूकता ही भविष्य में ऐसी शर्मनाक घटनाओं को रोक सकती है।

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