हर साल देशभर से हज़ारों युवा अपने घरों को छोड़कर दिल्ली जैसे बड़े शहरों में आते हैं, एक सपना लिए – IAS बनने का। ये युवा गांव, कस्बों और शहरों से डॉ. मुकेर्जी नगर, करोल बाग और राजेन्द्र नगर जैसे इलाकों में बसते हैं, जहां भारत के प्रसिद्ध कोचिंग सेंटर हैं। लेकिन IAS बनने का रास्ता सिर्फ किताबों और क्लासरूम तक सीमित नहीं। इस सपने के पीछे संघर्ष, तंगी और अकेलापन गहराई से जुड़ा है।
हमने करोल बाग का दौरा किया, जहां प्रतिष्ठित Drishti IAS कोचिंग संस्थान है। वहां कई छात्र-छात्राओं से बातचीत में उनके जीवन के अनकहे पहलुओं को समझा, खासकर PGs और किराए के कमरों में होने वाली समस्याओं को।
करोल बाग: पूरी रात नींद नहीं, लेकिन कोई सुनने वाला नहीं
एक लड़की ने बताया, “एक बार बिजली चली गई। पूरी रात ब्रोकर को कॉल किया, लेकिन उसने फोन नहीं उठाया। नींद नहीं आई क्योंकि स्टडी मटेरियल भी सेव नहीं हो पाया।” दिल्ली जैसे शहर में, जहां हर सेकंड कीमती है, ऐसी लापरवाही मानसिक और शारीरिक थकान को बढ़ाती है।
“अब खाना पसंद नहीं, मजबूरी है”
एक अन्य लड़की ने कहा, “पहले खाने के विकल्प चुनने की आज़ादी थी, लेकिन अब ‘मैच का खाना’ ही खाना पड़ता है।” यानी तय मेन्यू सबके लिए एक जैसा, चाहे तबीयत साथ दे या नहीं। कई छात्रों ने बताया कि PG का खाना अक्सर खाने लायक नहीं होता, लेकिन कोई विकल्प न होने से मजबूरी में वही खाना पड़ता है।
“पानी पीने तक की आज़ादी नहीं”
पीने के पानी की समस्या भी गंभीर है। एक लड़की ने कहा, “PG में साफ पानी नहीं मिलता, बाहर से पानी खरीदना पड़ता है।” जब बिजली और पानी जैसी मूलभूत सुविधाएं भरोसेमंद नहीं, तो पढ़ाई पर फोकस करना मुश्किल हो जाता है।
“महंगाई ने सपना और भारी कर दिया”
महंगाई एक बड़ी चुनौती है। कई छात्र बेरोज़गार हैं, और कोचिंग फीस, रूम रेंट, खाने-पीने का खर्च उनकी आर्थिक हालत पर दबाव डालता है। एक लड़की ने बताया कि मकान मालिक एग्रीमेंट साइन करवाते हैं, लेकिन कई शर्तें पहले नहीं बताते, जिससे छात्र महंगे किराए में फंस जाते हैं।
हर छात्र की कहानी अलग, दर्द एक जैसा
हर छात्र की परिस्थितियां अलग हैं – कोई खाने की क्वालिटी से परेशान है, कोई बिजली-पानी की कमी से, तो कोई महंगे किराए से। लेकिन इन सबमें एक बात कॉमन है – ये सभी सीमित संसाधनों में अकेले संघर्ष कर रहे हैं, फिर भी दिल में बड़ी उम्मीद लिए।
निष्कर्ष
दिल्ली में IAS की तैयारी करने वाले छात्र सिर्फ किताबों में नहीं उलझे। उनके सामने रोज़मर्रा की समस्याएं हैं – बिजली, पानी, खाना, रेंट और मानसिक स्ट्रेस। इन युवाओं की बात सिर्फ कोचिंग रिव्यू या रिजल्ट तक सीमित नहीं होनी चाहिए। उनके रहन-सहन और मानसिक स्वास्थ्य पर भी ध्यान देना ज़रूरी है। क्योंकि सपना तभी साकार होगा, जब नींव मज़बूत होगी – और वह नींव है सुखद, सुरक्षित और सम्मानजनक जीवन।