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Reading: एक अकेले बुजुर्ग की जंतर मंतर पर न्याय की पुकार: सिस्टम के खिलाफ संघर्ष
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एक अकेले बुजुर्ग की जंतर मंतर पर न्याय की पुकार: सिस्टम के खिलाफ संघर्ष

newsdiggy
Last updated: August 6, 2025 6:30 pm
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Published August 6, 2025
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जंतर मंतर
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दिल्ली के जंतर मंतर पर 65 वर्षीय बुजुर्ग की न्याय की लड़ाई। विश्वासघात, झूठे मुकदमे और आर्थिक संकट से जूझते इस शख्स की कहानी, जो सिस्टम की खामियों को उजागर करती है। पढ़ें उनकी मार्मिक कहानी।

Contents
प्रस्तावना: एक अकेली आवाज की गूंजकौन हैं यह बुजुर्ग?विश्वासघात और बर्बादी की कहानीझूठा मुकदमा और उत्पीड़नन्याय की तलाश: बंद दरवाजों का सफरआर्थिक संकट: कर्ज और धमकियों का बोझजंतर मंतर: आखिरी उम्मीदयह सिर्फ एक कहानी नहीं, सिस्टम का आईना हैनिष्कर्ष: क्या कोई सुनेगा?

Table of Contents

Toggle
  • प्रस्तावना: एक अकेली आवाज की गूंज
  • कौन हैं यह बुजुर्ग?
  • विश्वासघात और बर्बादी की कहानी
  • झूठा मुकदमा और उत्पीड़न
    • न्याय की तलाश: बंद दरवाजों का सफर
  • आर्थिक संकट: कर्ज और धमकियों का बोझ
  • जंतर मंतर: आखिरी उम्मीद
  • यह सिर्फ एक कहानी नहीं, सिस्टम का आईना है
  • निष्कर्ष: क्या कोई सुनेगा?

प्रस्तावना: एक अकेली आवाज की गूंज

दिल्ली का जंतर मंतर, भारत का वह लोकतांत्रिक मंच, जहां हर दिन लोग अपने हक और न्याय की मांग लेकर आते हैं। यहां भीड़, बैनर और नारों का मेला सजता है, लेकिन 1 अगस्त 2025 को इस भीड़ में एक 65 वर्षीय बुजुर्ग अकेले खड़े थे। न कोई बैनर, न कोई नारा, बस एक बैग में दस्तावेज और आंखों में उम्मीद। यह कहानी एक ऐसे शख्स की है, जिसने विश्वासघात, झूठे मुकदमों और सिस्टम की खामियों से जूझते हुए भी हार नहीं मानी।

कौन हैं यह बुजुर्ग?

लखनऊ के रहने वाले इस बुजुर्ग की जिंदगी कभी खुशहाल थी। Indian Oil के पेट्रोल पंप में साझेदार के रूप में उनकी अच्छी आय थी। परिवार, सम्मान और प्रतिष्ठा उनके जीवन का हिस्सा थे। लेकिन एक गलती ने उनकी जिंदगी को उलट-पुलट कर दिया।

उनके भतीजे के दोस्त ने आर्थिक तंगी का हवाला देकर उनसे पैसे उधार मांगे। भले स्वभाव के इस बुजुर्ग ने मदद कर दी, लेकिन उन्हें नहीं पता था कि यह मदद उनकी बर्बादी का कारण बन जाएगी।

विश्वासघात और बर्बादी की कहानी

जिस युवक को उन्होंने पैसे दिए, वह आज सरकारी कर्मचारी बन चुका है। उसने न केवल पैसे लौटाने से इनकार किया, बल्कि धमकियां देना शुरू कर दिया। उसका दावा था कि उसने पैसे कैश में लौटा दिए, लेकिन कोई सबूत नहीं। इतना ही नहीं, उसने बुजुर्ग के नाम पर लोन लिया और अब वह लोन और ब्याज का बोझ भी बुजुर्ग को ही उठाना पड़ रहा है।

झूठा मुकदमा और उत्पीड़न

जब बुजुर्ग ने कानूनी रास्ता अपनाया, तो उनके खिलाफ ही झूठा मुकदमा दर्ज करवाया गया। आरोप था कि उन्होंने उस व्यक्ति और उसकी पत्नी के साथ गाली-गलौच और छेड़खानी की। यह आरोप बेबुनियाद था, लेकिन सिस्टम में झूठ को हथियार बनाना आसान है।

न्याय की तलाश: बंद दरवाजों का सफर

बुजुर्ग ने लखनऊ में हर संभव दरवाजा खटखटाया—DM ऑफिस, CM ऑफिस, पुलिस कमिश्नर और कोर्ट। लेकिन हर जगह निराशा हाथ लगी:

  • अदालत में सुनवाई: आरोपी कोर्ट में पेश ही नहीं होता।
  • पुलिस की निष्क्रियता: कोई कार्रवाई नहीं होती।
  • प्रशासन की खामोशी: फाइलें “प्रक्रियाधीन” बताकर दबा दी जाती हैं।
  • PMO तक अपील: उनके बच्चों ने PMO ऐप के जरिए शिकायत की, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला।

अब वह गुरुद्वारे में शरण लिए हुए हैं, जहां से वह अपनी लड़ाई को जारी रख रहे हैं।

आर्थिक संकट: कर्ज और धमकियों का बोझ

इस अन्याय ने बुजुर्ग को मानसिक और आर्थिक रूप से तोड़ दिया:

  • कर्ज का जाल: उनके नाम पर लिया गया लोन ब्याज के साथ बढ़ता जा रहा है।
  • बिजली चोरी: आरोपी उनके नाम पर बिजली कनेक्शन का दुरुपयोग कर रहा है, और बिल बुजुर्ग को भेजा जा रहा है।
  • घर पर खतरा: उन्हें धमकियां मिल रही हैं कि उनका घर खाली करवाया जाएगा।

एक समय जिनका अपना कारोबार था, आज वह इस डर में जी रहे हैं कि उनका सब कुछ छिन सकता है।

जंतर मंतर: आखिरी उम्मीद

जब लखनऊ में सभी रास्ते बंद हो गए, तो बुजुर्ग ने दिल्ली का रुख किया। जंतर मंतर पर वह अकेले खड़े हैं, बिना किसी संगठन या मीडिया समर्थन के। उनके पास सिर्फ उनके दस्तावेज और एक उम्मीद है कि शायद कोई उनकी आवाज सुने। वह कहते हैं:

“मैं किसी से नफरत नहीं करता। मुझे सरकार से नहीं, केवल इंसाफ से मतलब है।”

वह हर दिन गुरुद्वारे से जंतर मंतर आते हैं, चुपचाप खड़े होते हैं, और अपनी कहानी सुनाने को तैयार रहते हैं।

यह सिर्फ एक कहानी नहीं, सिस्टम का आईना है

यह बुजुर्ग अकेले नहीं हैं। उनकी कहानी उस भारत की सच्चाई दर्शाती है, जहां:

  • सच्चे नागरिक सिस्टम से हार रहे हैं।
  • सरकारी कर्मचारी सत्ता के दम पर अजेय हो गए हैं।
  • झूठा केस दर्ज कराना आसान है, लेकिन न्याय पाना मुश्किल।
  • ईमानदारी बोझ बन चुकी है।
  • संविधान की धाराएं किताबों तक सीमित रह गई हैं।

निष्कर्ष: क्या कोई सुनेगा?

यह कहानी सिर्फ दया की नहीं, बल्कि सिस्टम को झकझोरने वाली है। अगर एक 65 वर्षीय बुजुर्ग को कोर्ट, सरकार, पुलिस या मीडिया से न्याय नहीं मिलता, तो आम आदमी के लिए न्याय का रास्ता क्या बचेगा?

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