दिल्ली देश की राजधानी है, लेकिन यहां कुछ ऐसे पहाड़ हैं जो पर्यावरण के लिए खतरा बन चुके हैं। ये कोई आम पहाड़ नहीं, बल्कि “कूड़े के पहाड़” हैं। फिलहाल दिल्ली में ऐसे तीन बड़े लैंडफिल साइट मौजूद हैं:
1. गाज़ीपुर लैंडफिल
2. भलस्वा लैंडफिल (बायपास के पास)
3. ओखला लैंडफिल
सरकार का दावा है कि इन कूड़े के पहाड़ों को साल 2028 तक पूरी तरह खत्म कर दिया जाएगा। लेकिन जब ज़मीनी हकीकत की पड़ताल के लिए News Diggy की टीम ओखला लैंडफिल पहुंची, तो तस्वीर कुछ और ही दिखाई दी।
ओखला: सरकारी ज़मीन, लेकिन खुली नहीं मीडिया के लिए
जैसे ही हमारी टीम ओखला लैंडफिल साइट पर पहुंची, वहां तैनात लोगों ने हमें अंदर जाने से साफ मना कर दिया। जब हमने उन्हें समझाने की कोशिश की, तो उन्होंने बेहद रुखे और अभद्र तरीके से बात की। बताया गया कि यह सरकारी ज़मीन है और अंदर जाना सुरक्षित नहीं है।
बारिश में कीचड़ और चोरी का डर
मौके पर मौजूद एक प्राइवेट लिमिटेड कंपनी वहां से कूड़ा उठाने का कार्य कर रही थी। कंपनी के कर्मचारियों ने बताया कि बारिश के कारण अंदर ज़बरदस्त कीचड़ हो गया है और मशीनें भी लगी हुई हैं, जिन्हें चोरी होने का डर हमेशा बना रहता है।
स्थानीय लोगों की हताशा
जब हमने साइट के बाहर रहने वाले स्थानीय लोगों से बात की, तो उनका कहना था कि यह कूड़े का पहाड़ सालों से यहीं है, और उन्हें नहीं लगता कि यह कभी खत्म होगा।
ओखला लैंडफिल के बिल्कुल बगल में एक अस्पताल है। अस्पताल के बाहर मौजूद लोगों ने हमें बताया कि बारिश के दौरान सड़ा हुआ बदबूदार पानी सड़क पर बहने लगता है, जिससे राहगीरों और मरीजों दोनों को भारी परेशानी होती है।
नेताओं के आने पर दिखावटी सफाई
वहीं, सड़क किनारे खाने-पीने के स्टॉल लगाने वालों ने बताया कि जब कोई मंत्री या वीआईपी व्यक्ति आता है, तो सफाई का नाटक किया जाता है, लेकिन आम दिनों में कोई ध्यान नहीं देता।
बस्ती में फैला कूड़ा और गंदगी
जब हम लैंडफिल के पास की बस्ती में गए, तो वहां की सड़कें कूड़े-कचरे से अटी पड़ी थीं। स्थानीय लोगों ने बताया कि उन्हें रोज़मर्रा की ज़िंदगी में भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है, लेकिन कोई सुनवाई नहीं होती।
कचरे से पेट पालते लोग, जान जोखिम में
सबसे चौंकाने वाली बात तब सामने आई जब हमारी टीम उस हिस्से में पहुँची जहाँ से कुछ बांग्ला समुदाय के लोग लैंडफिल के पीछे की तरफ से ऊपर चढ़ते हैं। उन्होंने बताया कि जान का जोखिम उठाकर वे लोग ऊपर जाते हैं, कचरे से काम का सामान बिनते हैं और उसे बेचकर दिनभर में करीब 400-500 रुपए कमा पाते हैं।
उनका कहना था कि ये सब वे मजबूरी में करते हैं, क्योंकि और कोई विकल्प नहीं है। कई बार कूड़े के पहाड़ पर फिसलन और वहां मौजूद बुलडोज़रों के चलते दुर्घटनाएं होती हैं, और कुछ लोगों ने तो अपनी जान भी गंवाई है।
निष्कर्ष
दिल्ली के कूड़े के ये पहाड़ केवल पर्यावरण के लिए ही नहीं, बल्कि हज़ारों लोगों की ज़िंदगी के लिए भी खतरा बन चुके हैं। सरकार भले ही इन्हें 2028 तक हटाने का दावा कर रही हो, लेकिन जब तक ज़मीनी स्तर पर सख्त और ठोस कदम नहीं उठाए जाएंगे, तब तक ये पहाड़ सिर्फ ऊंचे ही होते जाएंगे।