नई दिल्ली: 19 जुलाई 2025 — दिल्ली के मजनूं का टीला इलाके में यमुना नदी के किनारे बसी श्रीराम कॉलोनी इन दिनों भारी संकट का सामना कर रही है। यह बस्ती उन पाकिस्तानी हिंदू शरणार्थियों का आशियाना है, जो वर्ष 2011, 2015 और 2023 में पाकिस्तान से धार्मिक उत्पीड़न और सामाजिक भेदभाव से तंग आकर भारत आए। इन परिवारों ने भारत को अपनी अंतिम उम्मीद मानकर यहां शरण ली, लेकिन अब इस बस्ती को खाली करने का सरकारी नोटिस जारी हुआ है। कारण बताया जा रहा है कि यह क्षेत्र यमुना के बाढ़ क्षेत्र में आता है, जिससे जान-माल का खतरा है। सवाल यह है कि क्या इन पाकिस्तानी शरणार्थियों के पास अब कोई सुरक्षित ठिकाना बचेगा?
मेहनत से बनाई अपनी छोटी-सी दुनिया
श्रीराम कॉलोनी में रहने वाले लोगों ने विपरीत परिस्थितियों में भी अपने लिए एक छोटा-सा संसार खड़ा किया है। News Diggy की टीम ने बस्ती का दौरा किया तो पाया कि यहां के लोग फुटपाथ पर छोटी दुकानें चलाते हैं, मोबाइल कवर और अन्य सामान बेचकर गुजारा करते हैं। महिलाएं लकड़ियों पर खाना बनाती हैं, क्योंकि गैस कनेक्शन जैसी बुनियादी सुविधाएं यहां उपलब्ध नहीं हैं।
स्थानीय प्रधान सोना दास जी ने बताया:
“यहां करीब 800 लोग रहते हैं। इनमें से 200 को भारतीय नागरिकता मिल चुकी है, 50 की प्रक्रिया चल रही है, और बाकी लोग दस्तावेजों की कमी के कारण परेशान हैं। पाकिस्तान से आए इन लोगों के पास सिर्फ अपनी जान बचाने की चाह थी।”
उन्होंने आगे कहा कि भले ही बस्ती बाढ़ क्षेत्र में हो, लेकिन निवासियों ने मेहनत से मिट्टी डालकर जमीन को ऊंचा कर लिया है, जिससे अब पानी यहां तक नहीं पहुंचता। फिर भी, सरकारी आदेश ने सभी को चिंता में डाल दिया है कि उनका आशियाना उजड़ सकता है।
मूलभूत सुविधाओं का अभाव
बस्ती में हालात बेहद चुनौतीपूर्ण हैं। सार्वजनिक शौचालय बदहाल स्थिति में हैं, गंदगी और दुर्गंध के कारण लोग इन्हें इस्तेमाल नहीं करते। घर ईंटों और तिरपाल से बने हैं, और अधिकतर लोग सीमित संसाधनों में जीवन बिता रहे हैं। कई पाकिस्तानी शरणार्थी ठीक से हिंदी भी नहीं बोल पाते, जिसके कारण सरकारी दफ्तरों में अपनी बात रखने में उन्हें भारी परेशानी होती है।
पाकिस्तानी: नागरिकता का अनसुलझा संकट
नागरिकता का मुद्दा इन पाकिस्तानी शरणार्थियों के लिए सबसे बड़ी चुनौती है। जिनके पास वैध दस्तावेज नहीं हैं, वे न तो सरकारी योजनाओं का लाभ ले पाते हैं और न ही पुनर्वास की कोई उम्मीद रख सकते हैं। दस्तावेज जुटाने की प्रक्रिया लंबी और जटिल है, जिसमें सरकारी रुकावटें उनकी मुश्किलें और बढ़ा देती हैं।
क्या है इनका भविष्य?
इस बस्ती के सामने अब कई अनुत्तरित सवाल हैं:
पुनर्वास की योजना: क्या सरकार इन शरणार्थियों के लिए कोई वैकल्पिक ठिकाना देगी?
नागरिकता की राह: बिना नागरिकता के ये लोग कहां जाएंगे?
सुरक्षित भविष्य: क्या इन परिवारों को वह सम्मान और सुरक्षा मिलेगी, जिसकी वे उम्मीद लेकर भारत आए थे?
श्रीराम कॉलोनी का मसला सिर्फ एक बस्ती का नहीं, बल्कि उन हजारों पाकिस्तानी शरणार्थियों का है, जो भारत को अपना घर मानते हैं। अब यह सरकार की जिम्मेदारी है कि इन लोगों को उजड़ने से बचाने के लिए ठोस कदम उठाए।