नई दिल्ली के संविधान क्लब में 21 दिसंबर 2025 को एक ऐतिहासिक बहस का आयोजन हुआ, जिसमें जाने-माने कवि-गीतकार जावेद अख्तर(Javed Akhtar) और इस्लामिक विद्वान मुफ्ती शमायल नदवी(Mufti Shamail Nadwi) आमने-सामने आए। यह बहस एक बुनियादी सवाल पर केंद्रित थी – “Does God Exist” (क्या ईश्वर का अस्तित्व है)। लगभग दो घंटे तक चली इस बहस ने देशभर में तीव्र चर्चा को जन्म दिया और सोशल मीडिया पर वायरल हो गई।
पत्रकार सौरभ द्विवेदी की मध्यस्थता में हुई यह बहस केवल एक टीवी डिबेट नहीं, बल्कि एक गंभीर बौद्धिक संवाद था, जिसमें दर्शन, विज्ञान, नैतिकता और मानव पीड़ा जैसे गहरे विषयों पर चर्चा हुई।
बहस की पृष्ठभूमि और नियम
इस बहस को शुरू करते हुए मॉडरेटर सौरभ द्विवेदी ने स्पष्ट किया कि यह एक शैक्षणिक आदान-प्रदान है, न कि किसी धर्म या विश्वास का प्रचार या आलोचना। उन्होंने दर्शकों और प्रतिभागियों से अनुरोध किया कि वे व्यक्तिगत हमलों और नारेबाजी से बचें।
संविधान क्लब का हॉल पूरी तरह से भरा हुआ था, और ऑनलाइन भी हजारों लोगों ने इस बहस को देखा। यह बहस उस मूलभूत प्रश्न पर केंद्रित थी जो सदियों से मानवता को उलझाए हुए है – Does God Exist।
मुफ्ती शमायल नदवी का दार्शनिक तर्क
Contingency Argument (निर्भरता का तर्क)
मुफ्ती शमायल नदवी, जो वहियान फाउंडेशन के संस्थापक और इंटरनेशनल इस्लामिक यूनिवर्सिटी मलेशिया में डॉक्टरल रिसर्चर हैं, ने अपनी बात शुरू करते हुए कहा कि Does God Exist का जवाब न तो पूरी तरह विज्ञान से दिया जा सकता है और न ही धर्मग्रंथों से। उन्होंने स्पष्ट किया कि:
- विज्ञान की सीमाएं: विज्ञान केवल भौतिक दुनिया को समझा सकता है, जबकि ईश्वर अभौतिक है।
- धर्मग्रंथों की सीमा: जो लोग प्रकाशना (Revelation) को ज्ञान का स्रोत नहीं मानते, उन्हें धर्मग्रंथ नहीं समझा सकते।
इसलिए, मुफ्ती नदवी ने दर्शन का सहारा लिया और “Contingency Argument” प्रस्तुत किया। उनके अनुसार:
- ब्रह्मांड निर्भर है (Contingent): हर चीज़ किसी न किसी कारण पर निर्भर है।
- अनंत श्रृंखला असंभव है: कारणों की अनंत श्रृंखला तार्किक रूप से असंभव है।
- आवश्यक सत्ता (Necessary Being): इसलिए, एक ऐसी सत्ता होनी चाहिए जो स्वयं किसी पर निर्भर न हो – जो शाश्वत, स्वतंत्र, बुद्धिमान और शक्तिशाली हो।
मुफ्ती नदवी ने डिजाइन किए गए वस्तुओं के उदाहरण देते हुए कहा कि ब्रह्मांड के सटीक नियम संयोग से नहीं, बल्कि सोद्देश्य सृजन का संकेत देते हैं।
स्वतंत्र इच्छा और बुराई का प्रश्न
Does God Exist की बहस में एक महत्वपूर्ण मुद्दा बुराई की समस्या था। मुफ्ती नदवी ने तर्क दिया:
- बुराई का अस्तित्व एक उद्देश्य पूरा करता है – यह अच्छाई और न्याय को परिभाषित करने में मदद करता है।
- मनुष्यों को स्वतंत्र इच्छा (Free Will) दी गई है, और हिंसा या क्रूरता जैसे कार्य मानवीय चयन के परिणाम हैं, दैवीय इरादे के नहीं।
- “सृष्टिकर्ता ने बुराई बनाई है, लेकिन वह बुरा नहीं है; जो अपनी स्वतंत्र इच्छा का दुरुपयोग करते हैं, वे जिम्मेदार हैं।”
जावेद अख्तर का तर्कवादी दृष्टिकोण
आस्था बनाम विश्वास
जावेद अख्तर, जो खुद को नास्तिक घोषित करते हैं, ने Does God Exist के प्रश्न पर अपना विचार रखते हुए विश्वास (Belief) और आस्था (Faith) के बीच अंतर स्पष्ट किया:
- विश्वास (Belief): प्रमाण, तर्क और साक्ष्य पर आधारित होता है।
- आस्था (Faith): बिना किसी प्रमाण के स्वीकार करने की मांग करती है।
अख्तर ने कहा, “जब कोई सबूत नहीं, कोई तर्क नहीं और कोई गवाह नहीं है, फिर भी आपसे विश्वास करने को कहा जाता है, तो यह आस्था है।” उन्होंने चेतावनी दी कि ऐसी आस्था सवाल करने को हतोत्साहित करती है।
देवताओं का बदलता स्वरूप
अख्तर ने इतिहास का हवाला देते हुए कहा कि मानव इतिहास में अनेक देवताओं की पूजा हुई है – यूनानी, रोमन, मिस्र की सभ्यताएं अपने-अपने देवताओं में विश्वास करती थीं, जो उस समय उतने ही निश्चित लगते थे जितने आज के आधुनिक धर्म।
“देवता समय के साथ बदलते हैं,” अख्तर ने कहा। उन्होंने यूरोप के कुछ हिस्सों में धार्मिक प्रभाव में आई गिरावट का हवाला दिया, यह तर्क देते हुए कि विश्वास प्रणालियां मानव ज्ञान के विस्तार के साथ विकसित होती हैं।
इसलिए, Does God Exist का जवाब समय और संदर्भ पर निर्भर करता है।
प्रकृति में नैतिकता नहीं है
अख्तर ने दैवीय न्याय की अवधारणा को चुनौती दी। उनके अनुसार:
- नैतिकता प्रकृति में मौजूद नहीं है, बल्कि मनुष्यों द्वारा समाज को व्यवस्थित करने के लिए बनाई गई है।
- न्याय यातायात नियमों की तरह काम करता है – सामाजिक व्यवस्था के लिए आवश्यक, लेकिन प्राकृतिक दुनिया में अंतर्निहित नहीं।
- “प्रकृति में कोई न्याय नहीं है,” अख्तर ने कहा, यह देखते हुए कि शिकारी जानवरों को शिकार मारने के लिए दंडित नहीं किया जाता।
सबसे तीव्र मुद्दा: मानव पीड़ा और गाजा प्रसंग
Does God Exist की बहस का सबसे संवेदनशील और विवादास्पद पहलू तब सामने आया जब जावेद अख्तर ने मानव पीड़ा, विशेष रूप से गाजा युद्ध का उल्लेख किया।
अख्तर का प्रश्न
अख्तर ने पूछा कि अगर एक सर्वशक्तिमान और करुणामय ईश्वर है, तो बच्चों की मृत्यु और संघर्ष क्षेत्रों में पीड़ा को कैसे समझाया जा सकता है?
“अगर ईश्वर सर्वव्यापी और सर्वशक्तिमान है, तो वह गाजा में भी मौजूद है,” अख्तर ने कहा, यह जोड़ते हुए कि ऐसी पीड़ा को देखकर उन्हें एक करुणामय देवता के अस्तित्व को स्वीकार करना मुश्किल लगता है।
उनकी इस टिप्पणी ने तीव्र प्रतिक्रियाएं उत्पन्न कीं। कुछ लोगों ने इसे असंवेदनशीलता और उकसावे के रूप में देखा, जबकि समर्थकों ने नैतिक तर्क के माध्यम से धार्मिक विश्वासों पर सवाल उठाने के उनके अधिकार का बचाव किया।
मुफ्ती नदवी का जवाब
मुफ्ती नदवी ने स्वतंत्र इच्छा पर जोर देते हुए जवाब दिया:
- हिंसा और क्रूरता के कार्य दैवीय इरादे से नहीं, बल्कि मानवीय चयन से उत्पन्न होते हैं।
- “सृष्टिकर्ता ने बुराई की संभावना बनाई है, लेकिन वह स्वयं बुरा नहीं है।”
- मनुष्य को स्वतंत्र इच्छा दी गई है, और अन्याय की जिम्मेदारी पूरी तरह से मानवीय कार्यों पर है।
इस प्रकार, Does God Exist के सवाल में मानव पीड़ा का मुद्दा केंद्रीय बन गया।
दार्शनिक गहराई: विज्ञान, तर्क और आस्था
क्या विज्ञान ईश्वर को नकार सकता है?
मुफ्ती नदवी ने तर्क दिया कि विज्ञान और धर्म अलग-अलग क्षेत्रों में काम करते हैं:
- विज्ञान: भौतिक प्रक्रियाओं को समझाता है – “कैसे” का जवाब देता है।
- धर्म/दर्शन: अस्तित्व के मेटाफिजिकल प्रश्नों को संबोधित करता है – “क्यों” का जवाब देता है।
नदवी ने कहा कि वैज्ञानिक खोजें केवल यह बताती हैं कि ब्रह्मांड कैसे कार्य करता है, न कि यह क्यों मौजूद है। इसलिए, Does God Exist का प्रश्न विज्ञान की सीमाओं से परे है।
बर्ट्रेंड रसेल का टीपॉट
जावेद अख्तर ने दार्शनिक बर्ट्रेंड रसेल के प्रसिद्ध उदाहरण का हवाला दिया – पृथ्वी की कक्षा में एक अदृश्य टीपॉट। अख्तर ने कहा:
“जो दावा करता है, उसे ही इसे साबित करना चाहिए।”
उन्होंने इस विचार को खारिज कर दिया कि संदेह करने वालों को ईश्वर के अस्तित्व को नकारना होगा। इसके बजाय, सबूत का भार दावा करने वाले पर होता है।
नैतिकता पर बहस: क्या बहुमत से न्याय तय होता है?
मुफ्ती नदवी का तर्क
नदवी ने अख्तर को यह कहते हुए चुनौती दी कि नैतिकता को केवल सामाजिक सहमति तक सीमित नहीं किया जा सकता:
“अगर अत्याचार को बहुमत द्वारा सही घोषित कर दिया जाए, तो क्या यह अत्याचार को न्यायसंगत बना देता है?”
उन्होंने तर्क दिया कि न्याय एक वस्तुनिष्ठ नैतिक सिद्धांत है, न कि केवल सामाजिक सुविधा।
अख्तर की प्रतिक्रिया
अख्तर ने इसे स्वीकार किया कि नैतिकता जटिल है, लेकिन वे इस बात पर अड़े रहे कि यह मानव-निर्मित है और समय के साथ विकसित होती है।
समय और ब्रह्मांड: “पहले” का प्रश्न
एक और महत्वपूर्ण बिंदु तब उठा जब प्रश्न किया गया कि ब्रह्मांड के निर्माण से “पहले” ईश्वर क्या कर रहा था।
मुफ्ती नदवी ने जवाब दिया:
- यह प्रश्न तार्किक रूप से त्रुटिपूर्ण है क्योंकि समय स्वयं ब्रह्मांड के साथ शुरू हुआ।
- “पहले” की अवधारणा समय के बिना अर्थहीन है।
इस प्रकार, Does God Exist के प्रश्न में समय की अवधारणा भी महत्वपूर्ण हो गई।
बहस की समाप्ति और सार्वजनिक प्रतिक्रिया
लगभग दो घंटे की बहस के बाद, क्रॉस-एग्जामिनेशन और दर्शकों के सवालों का दौर चला। न तो अख्तर और न ही नदवी ने अपनी स्थिति से समझौता किया, लेकिन बहस ने संयम और सम्मान की भावना बनाए रखी।
सोशल मीडिया पर प्रतिक्रिया
बहस के बाद सोशल मीडिया पर तीव्र चर्चा हुई:
- आलोचक: कुछ लोगों ने अख्तर के गाजा संबंधी टिप्पणी को असंवेदनशील और उकसाने वाला बताया।
- समर्थक: कई लोगों ने तर्कवाद और खुली चर्चा के उनके साहस की प्रशंसा की।
- निष्पक्ष दर्शक: अधिकांश लोगों ने इस बात की सराहना की कि दोनों पक्षों ने अपने तर्क स्पष्ट और सम्मानजनक तरीके से प्रस्तुत किए।
Does God Exist जैसे प्रश्न पर खुली बहस ने भारतीय सार्वजनिक जीवन में आस्था और तर्क के बीच चल रहे तनाव को उजागर किया।
निष्कर्ष: एक अनसुलझा लेकिन महत्वपूर्ण प्रश्न
जावेद अख्तर और मुफ्ती शमायल नदवी के बीच यह बहस एक महत्वपूर्ण घटना थी, जिसने Does God Exist जैसे गहरे सवाल पर विचारशील संवाद को बढ़ावा दिया।
मुख्य बिंदु:
- Does God Exist – यह प्रश्न केवल धार्मिक नहीं, बल्कि दार्शनिक, नैतिक और वैज्ञानिक भी है।
- मुफ्ती नदवी ने Contingency Argument और स्वतंत्र इच्छा का सहारा लिया।
- जावेद अख्तर ने तर्कवाद, ऐतिहासिक संदर्भ और मानव पीड़ा को केंद्र में रखा।
- गाजा संबंधी टिप्पणी ने बहस को और भी संवेदनशील बना दिया।
- बहस ने यह साबित किया कि भारत में गहरे वैचारिक मुद्दों पर सम्मानजनक संवाद संभव है।
यह बहस भले ही Does God Exist के सवाल का अंतिम उत्तर नहीं दे पाई, लेकिन इसने लोगों को सोचने पर मजबूर किया। आस्था, विज्ञान, नैतिकता और मानवता के बीच के संबंधों पर यह एक महत्वपूर्ण चर्चा थी।


