मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा जिले में एक भयानक घटना सामने आई है जिसमें 20 बच्चों की किडनी फेल्योर के कारण मृत्यु हो गई। जांच में यह पता चला कि ये बच्चे कोल्ड्रिफ नामक खाँसी सिरप ले चुके थे, जिसमें डायएथिलीन ग्लाइकोल DEG जैसे जहरीले केमिकल पाए गए। इस सिरप को तमिलनाडु की Sresan Pharmaceuticals कंपनी द्वारा तैयार किया गया था।
प्रारंभिक जांच रिपोर्टों के अनुसार, इस सिरप में DEG की मात्रा लगभग 48.6% पाई गई, जबकि मानक सीमा लगभग 0.1% होनी चाहिए थी।सितंबर महीने की शुरुआत में कुछ बच्चों की अज्ञात रूप से मृत्यु हुई। धीरे-धीरे मृतकों की संख्या बढ़ी 6 से लेकर 14 बच्चों तक की खबरें आईं। सरकारी कार्रवाई 19 नमूनों में से 3 नमूने फेल पाए गए।
छिंदवाड़ा में सरकार की लापरवाही
कोल्ड्रिफ सिरप तमिलनाडु की Sresan Pharmaceuticals कंपनी में बनी थी। यह सिरप कई राज्यों में बेचा जा रहा था, लेकिन मध्य प्रदेश ड्रग कंट्रोल विभाग ने इसका कोई नियमित सैंपल टेस्ट नहीं किया। ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट के तहत हर राज्य में बिकने वाली दवाओं के नमूनों की रूटीन टेस्टिंग ज़रूरी होती है – मगर छिंदवाड़ा में यह प्रक्रिया पूरी तरह नदारद रही। यानी सरकार की निगरानी एजेंसियाँ सोई रहीं, जब तक मौतें नहीं हुईं।
बच्चों की पहली मौतें सितंबर की शुरुआत में हुईं, लेकिन ज़िला स्वास्थ्य विभाग ने इसे सामान्य बीमारी मानकर रिपोर्ट आगे नहीं भेजी। जब 4–5 बच्चों की मौतें हो चुकी थीं, तब जाकर वरिष्ठ अधिकारियों का ध्यान गया। किसी भी जिले में इस तरह की एक जैसी बीमारी से एक के बाद एक मौतें हों, तो तुरंत मेडिकल अलर्ट जारी होना चाहिए था – पर ऐसा नहीं हुआ।
जांच में पाया गया कि इन दुकानों के लाइसेंस में कई गड़बड़ियाँ थीं – कुछ दवाएँ बिना बिल के बेची जा रही थीं। लेकिन ड्रग इंस्पेक्टर और विभागीय अधिकारी वर्षों से उनकी जांच नहीं कर रहे थे। यानी कागज़ पर सब ठीक दिखाने वाली पुरानी सिस्टम की बीमारी यहाँ साफ दिखाई दी।
कार्यवाही
छिंदवाड़ा में मौतों की खबर सामने आने के बाद भी राज्य सरकार ने तीन दिन तक कोई औपचारिक जांच नहीं बैठाई। सीएम मोहन यादव ने जांच के आदेश तब दिए जब मामला मीडिया में वायरल हुआ और विपक्ष ने प्रश्न उठाए। तब जाकर 2 ड्रग इंस्पेक्टर और 1 उप निदेशक को निलंबित किया गया। सरकार ने तब तक इंतज़ार किया जब तक जनता का गुस्सा सड़कों पर नहीं आया।
निष्कर्ष
छिंदवाड़ा सिरप मामला केवल एक दवा कंपनी की गलती नहीं – यह राज्य और केंद्र, दोनों सरकारों की विफलता का उदाहरण है। सरकार की यह लापरवाही सीधे तौर पर उन मासूम बच्चों की मौत के लिए जिम्मेदार ठहराई जा सकती है।