दिल्ली में एक्सीडेंट के बाद बॉडी को 13 किलोमीटर तक घसीटा, शरीर में नहीं बचा खून का एक भी कतरा
दिल्ली को देश का केंद्र कहने के साथ-साथ अगर जुर्म का केंद्र भी कहा जाये तो गलत नहीं होगा, आये दिन आपको कोई न कोई रेप केस, मर्डर, शव के टुकड़े-टुकड़े आदि कुछ ना कुछ सुनने को या पढ़ने को मिल ही जायेगा l नए साल का दिन था मगर देश नए साल में भी दिल दहलाने वाली खबर से दूर नहीं रह सका।
आपको बता दूँ कि जब देश और दुनिया नए साल के जश्न में डूबे थे तब दिल्ली के अमन विहार की रहने वाली एक लड़की अपनी ज़िन्दगी और मौत से लड़ रहे थी, पीड़िता एक इवेंट मैनेजमेंट कंपनी में काम करती थी जिसके चलते घर देरी से ही जा पाती थी मगर उसे क्या मालूम था कि नए साल का पहला दिन ही उसकी ज़िन्दगी का आखिरी दिन होगा।
कोई जिम्मेदारी लेगा या सब भूल गए हैं?
क्या देश का मर्द अपनी जिम्मेदारी भूल गया है? क्या देश की पुलिस अपनी जिम्मेदारी भूल गई है? क्या हमें इस तरह की घटनाओं को सुनने और सहने की आदत हो गई है? क्या हम एक ऐसा समाज पैदा कर रहे हैं जिसके नागरिक अंदर से नामर्द बन चुके हैं? आज हमें अपने आप से इस तरह के कई सवाल करने की जरुरत है।
क्योकि दो महीने भी नहीं हुए जब हमें पता लगा था कि एक दरिंदे ने एक लड़की के शव को 35 टुकड़ों में काट कर फेंक दिया था। 15 दिन भी नहीं हुए जब हमें पता चला था कि स्कूल जाती एक लड़की पर कुछ हैवानों ने एसिड फेंक दिया था और नए साल पर हैवानों का नया तोहफा दिल्ली पुलिस और उसकी जनता के मुँह पर करारा थप्पड़ है।
ऐसे मुद्दों पर भी राजनीती?
दिल वालों की दिल्ली की जहग दिल दहलाने वाले कांडों की दिल्ली कहें तो किसी को बुरा नहीं लगना चाहिए। दिल्ली मॉडल का हवाला दिए आप के संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल जिस रफ़्तार से आगे बढ़ रहे हैं उनको पता नहीं क्यों ये दिल्ली में कोरोना वायरस की स्पीड से फैलता हैवानियत का वायरस दिखाई नहीं दे रहा?
उधर बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ का नारा देने वाले देश के मुखिया नरेंद्र मोदी पता नहीं क्यों बेटियों को बचा नहीं पा रहे? सब बस अपनी राजनितिक रोटियाँ सेकने में लगे हैं। सिर्फ भारत माता की जय बोलने से भारत माता की जय नहीं होगी उसके लिए कानून व्यवस्था को दुरस्त करना होगा, नियमों का पालन सख्ती से करवाना होगा, दोषियों को शख्त से शख्त सजा-सजा समय रहते देने होगी अन्यथा हालत हाथ से निकल सकते हैं।