महाराष्ट्र, 5 जुलाई 2025: महाराष्ट्र में किसानों की आत्महत्या का संकट गहराता जा रहा है। जनवरी से मार्च 2025 के बीच राज्य में 767 किसानों ने अपनी जान ली, यानी औसतन प्रतिदिन 8 किसान आत्महत्या कर रहे हैं। विदर्भ क्षेत्र, खासकर यवतमाल, अमरावती, अकोला, बुलढाना और वाशिम जैसे जिले, इस त्रासदी के केंद्र में हैं। यह जानकारी महाराष्ट्र के राहत और पुनर्वास मंत्री मकरंद पाटिल ने विधान परिषद में एक सवाल के जवाब में दी।
संकट के आंकड़े
आत्महत्या की संख्या: जनवरी से मार्च 2025 तक 767 किसानों ने आत्महत्या की, जिनमें से सबसे अधिक मामले विदर्भ के अमरावती मंडल (257 मामले) और मराठवाड़ा के हिंगोली जिले (24 मामले) से हैं।
सरकारी सहायता: महाराष्ट्र सरकार आत्महत्या करने वाले किसानों के परिवारों को 1 लाख रुपये की आर्थिक सहायता देती है।
आत्महत्या के कारण
महाराष्ट्र में किसान आत्महत्याओं के पीछे कई सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय कारण हैं:
कर्ज का बोझ: विदर्भ के 95% कपास किसान भारी कर्ज में डूबे हैं, जो अक्सर निजी साहूकारों से 30-40% ब्याज दर पर लिया जाता है। कम आय और बढ़ती लागत (बीज, उर्वरक, कीटनाशक) इस बोझ को और बढ़ाते हैं। उदाहरण के लिए, कपास की कीमत 6,800 रुपये प्रति क्विंटल है, जबकि उत्पादन लागत 6,500-7,000 रुपये है।
फसल की विफलता: विदर्भ में अधिकांश खेती वर्षा पर निर्भर है। अनियमित मानसून, सूखा, और असमय बारिश फसलों को नष्ट करती हैं। अपर्याप्त सिंचाई सुविधाएं (केवल 33,500 वर्ग किमी सिंचित भूमि) इस समस्या को और गंभीर बनाती हैं।
संस्थागत समर्थन की कमी: बैंकों से सहकारी ऋण की कमी और निजी साहूकारों का उत्पीड़न किसानों को परेशान करता है। कर्ज माफी और फसल बीमा योजनाओं का कार्यान्वयन भी कमजोर रहा है।
मनोवैज्ञानिक तनाव: मृतक किसानों के परिवारों में 62% लोग, विशेष रूप से 78% महिलाएं, मानसिक तनाव, उदासी और आत्मघाती विचारों से जूझ रहे हैं। मानसिक स्वास्थ्य सहायता की कमी इस संकट को और गहराती है।
नीतिगत कमियां: न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की अनुपस्थिति और अपर्याप्त सरकारी योजनाएं, जैसे प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि (6,000 रुपये/वर्ष) और नमो शेतकारी महासम्मान निधि (6,000 रुपये/वर्ष), किसानों की जरूरतों को पूरा नहीं करतीं।
आलोचनाएं और मांगें
राजनीतिक प्रतिक्रिया: कांग्रेस नेता नाना पटोले ने सरकार पर समय पर सहायता न देने और संकट को गंभीरता से न लेने का आरोप लगाया। उन्होंने डीजल, बीज और उर्वरकों की बढ़ती लागत के मद्देनजर सहायता राशि बढ़ाने की मांग की।
कार्यकर्ताओं की मांग: शेतकारी संगठन के कैलाश तावर जैसे नेताओं ने MSP की गारंटी, बेहतर सिंचाई, और मानसिक स्वास्थ्य सहायता की मांग की। उनका कहना है कि 1 लाख रुपये की सहायता अपर्याप्त है और अक्सर देरी से मिलती है।
पी . साईनाथ का दृष्टिकोण: साईनाथ ने कहा कि आत्महत्याएं कृषि संकट का लक्षण हैं। वे क्षेत्र की जलवायु के लिए उपयुक्त फसलों, बेहतर सिंचाई, और ऋण प्रणाली में सुधार की वकालत करते हैं।
निष्कर्ष
महाराष्ट्र में 767 किसान आत्महत्याएं कर्ज, फसल खराब होने, अपर्याप्त सरकारी समर्थन और मानसिक तनाव जैसे गहरे संकट को दर्शाती हैं। 1 लाख रुपये की सहायता अपर्याप्त है, और नौकरशाही देरी ने कई परिवारों को राहत से वंचित रखा। टिकाऊ खेती, बेहतर ऋण प्रणाली और मानसिक स्वास्थ्य सहायता जैसे व्यापक समाधानों की तत्काल जरूरत है। यह संकट केवल आर्थिक नहीं, बल्कि सामाजिक और मानवीय भी है, जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।