जनमाष्टमी, भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव का पर्व, पूरे भारत में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। दिल्ली का इस्कॉन मंदिर इस अवसर पर विशेष आकर्षण का केंद्र बन जाता है। मंदिर में हर साल लाखों भक्त दर्शन करने आते हैं और भगवान के बाल स्वरूप के दर्शन कर पुण्य लाभ प्राप्त करते हैं। इस वर्ष भी मंदिर परिसर में गहमागहमी देखने लायक थी। मैंने इस पावन अवसर पर मंदिर का दौरा किया और पूरे वातावरण को करीब से अनुभव किया।
जनमाष्टमी: मंदिर का वातावरण और भीड़
सुबह से ही मंदिर परिसर में भक्तों की भीड़ लगनी शुरू हो गई थी। जैसे-जैसे दिन बढ़ा, वैसे-वैसे श्रद्धालुओं की संख्या में इज़ाफा होता गया। हर तरफ कृष्ण नाम की गूंज सुनाई दे रही थी कोई “हरे कृष्ण हरे राम” का कीर्तन कर रहा था तो कोई हाथ में माला लेकर जप में लीन था।
भीड़ के बीच मंदिर प्रशासन व्यवस्था संभालने में जुटा रहा। भक्तों को लाइन में खड़ा किया जा रहा था ताकि दर्शन सुचारु रूप से हो सकें।
सजावट और आकर्षण
पूरा मंदिर रंग-बिरंगी लाइटों और फूलों से सजाया गया था। दीवारों और छतों पर फूलों की झालरें लटक रही थीं और वातावरण में हल्की-हल्की खुशबू फैल रही थी। हालांकि यहाँ झांकी जैसी कोई विशेष प्रस्तुति नहीं थी, लेकिन छोटे-छोटे बच्चे कृष्ण और राधा के रूप में सजे हुए आए थे, जिसने भक्तों का मन मोह लिया। उनका मासूम रूप और भोला चेहरा मानो पूरे माहौल में कृष्ण बाललीला की झलक प्रस्तुत कर रहा था।
भजन-कीर्तन और भक्ति का रंग
मंदिर के मुख्य हॉल में भजन और कीर्तन चल रहे थे। ढोलक, मृदंग और करताल की धुनों पर लोग झूमते-नाचते दिख रहे थे। भक्त मंडली एक स्वर में गा रही थी — “हरे कृष्ण हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण हरे हरे” — और पूरा वातावरण भक्ति रस में डूबा हुआ था। यह दृश्य देख कर लग रहा था मानो हर कोई अपने-अपने ढंग से कृष्ण के चरणों में समर्पित हो रहा है।
पानी और प्रसाद की व्यवस्था
चूंकि भीड़ बहुत ज्यादा थी, इसलिए पीने के पानी के लिए कूलर जैसी व्यवस्था नज़र नहीं आई। मंदिर प्रशासन की ओर से छोटे-छोटे पैकेट और पानी की बोतलें उपलब्ध कराई जा रही थीं, ताकि कोई भी भक्त प्यासा न रहे। वहीं, प्रसाद वितरण भी सुव्यवस्थित तरीके से किया गया। भक्तों को छोटे पैकेट में प्रसाद दिया जा रहा था।
भक्तों की भावनाएँ
भीड़ भले ही अधिक थी, लेकिन लोगों में कोई अधीरता नहीं दिखी। हर कोई अपने क्रम की प्रतीक्षा कर रहा था और इस पावन पर्व को पूरे श्रद्धा भाव से जी रहा था। कई भक्तों ने यह भी कहा कि भले ही थोड़ी कठिनाई हो, लेकिन कृष्ण जन्म के इस अवसर पर मंदिर आकर शांति और भक्ति का जो अनुभव मिलता है, वह कहीं और संभव नहीं।
निष्कर्ष
कुल मिलाकर, इस्कॉन मंदिर का यह जनमाष्टमी उत्सव केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं था, बल्कि यह भक्ति, आस्था और सांस्कृतिक रंगों का संगम था। भीड़ और व्यवस्थाओं के बीच भी लोगों का उत्साह और भगवान के प्रति श्रद्धा सबसे बड़ी झलक थी। बच्चों का कृष्ण-राधा के रूप में सजना, भक्तों का सामूहिक कीर्तन में डूब जाना और मंदिर की भव्य सजावट ने इस उत्सव को और खास बना दिया।