भारत जैसे सांस्कृतिक और पारंपरिक मूल्यों वाले देश में लिव-इन रिलेशनशिप (Live-in-Relationship) एक ऐसा विषय है, जो समाज में तीव्र बहस का कारण बना हुआ है। जहां युवा इसे व्यक्तिगत स्वतंत्रता और आधुनिकता का प्रतीक मानते हैं, वहीं समाज का एक बड़ा वर्ग इसे पारिवारिक मूल्यों और नैतिकता के खिलाफ समझता है। दिल्ली के विभिन्न लोगों से बातचीत के आधार पर यह लेख समाज के इस जटिल और विरोधाभासी नजरिए को प्रस्तुत करता है।
दिल्ली में लिव-इन रिलेशनशिप (Live-in-Relationship) पर लोगों के विचार
हमने दिल्ली के एक क्षेत्र में जाकर अलग-अलग पृष्ठभूमि के लोगों से लिव-इन रिलेशनशिप पर उनकी राय जानी। उनकी सोच और अनुभव समाज में मौजूद विविध दृष्टिकोणों को दर्शाते हैं।
1. दुकानदार की राय: कैरियर पर ध्यान दो, रिश्तों से बचो
एक दुकानदार ने लिव-इन रिलेशनशिप को नैतिक पतन और सामाजिक नुकसान का कारण बताया। उनकी राय थी कि युवाओं को कैरियर पर ध्यान देना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि लड़कियों के पहनावे और शहरी संस्कृति इस तरह के रिश्तों को बढ़ावा दे रही है। उनके शब्दों में:
“गांवों में ऐसा नहीं होता, लेकिन शहरों की गलियों में यह आम है।”
2. ऑटो ड्राइवर की सोच: प्यार में ईमानदारी जरूरी
एक ऑटो चालक ने अधिक संतुलित दृष्टिकोण अपनाया। अपनी लव मैरिज के अनुभव को साझा करते हुए उन्होंने कहा:
“लड़के-लड़कियां जॉब के बहाने ‘ओयो’ जाते हैं। मेरी बेटी ऐसा करे तो मैं उसे जिंदा नहीं छोड़ूंगा।”
उनके लिए यह परवरिश की कमी और नैतिक पतन का प्रतीक है।
4. यूपी के युवक की राय: गांवों में इसकी जगह नहीं
उत्तर प्रदेश से आए एक युवक ने इसे शहरी समस्या बताया। उनके अनुसार, ग्रामीण समाज में लिव-इन रिलेशनशिप की कोई जगह नहीं है। उन्होंने सख्त लहजे में कहा कि ऐसी हरकत करने वाली बहन या परिवार की महिला को सजा दी जाएगी।
5. धार्मिक युवक का दृष्टिकोण: विदेशी संस्कृति और बर्बादी
एक धार्मिक प्रवचनों से प्रभावित युवक ने लिव-इन को विदेशी संस्कृति का हिस्सा बताया। उनके अनुसार, इसका अंत अक्सर ब्रेकअप और जिंदगी की बर्बादी में होता है।
6. एक माँ की चिंता: विवाह ही बेहतर
एक माँ ने पारंपरिक सोच के साथ कहा कि विवाह ही रिश्तों का सही रास्ता है। उन्होंने स्पष्ट किया:
“अगर साथ रहना है, तो शादी करो। लिव-इन में क्या रखा है?”
उनकी बातों में माँ की चिंता और सामाजिक प्रतिष्ठा का डर झलकता था।
7. युवतियों का नजरिया: आत्मनिर्भर बनो, पश्चिमी संस्कृति मत अपना
ओदो युवतियों ने आत्मनिर्भरता की वकालत की, लेकिन लिव-इन रिलेशनशिप का विरोध किया। उनके अनुसार, यह पश्चिमी संस्कृति का प्रभाव है और भारतीय समाज में इसकी कोई जरूरत नहीं। वे माता-पिता की मर्जी से शादी को सर्वश्रेष्ठ मानती थीं।
समाज में लिव-इन रिलेशनशिप पर विरोधाभास
हमारी बातचीत से स्पष्ट हुआ कि लिव-इन रिलेशनशिप को लेकर समाज में गहरे मतभेद हैं। नीचे दी गई तालिका विभिन्न दृष्टिकोणों को दर्शाती है:
- पारंपरिक वर्ग: इस वर्ग के लोग, विशेषकर ग्रामीण और बुजुर्ग, लिव-इन रिलेशनशिप का विरोध करते हैं। वे इसे नैतिक और सांस्कृतिक पतन का कारण मानते हैं।
- आधुनिक सोच वाले लोग: यह समूह लिव-इन रिलेशनशिप का समर्थन करता है। उनके लिए यह रिश्तों को गहराई से समझने और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अवसर है।
- महिलाएं/माएँ: अधिकांश महिलाएं और माएँ लिव-इन रिलेशनशिप के खिलाफ हैं। वे परिवार की प्रतिष्ठा और भविष्य को लेकर चिंतित रहती हैं।
- युवा लड़कियाँ: ये आत्मनिर्भरता की वकालत करती हैं, लेकिन लिव-इन रिलेशनशिप का विरोध करती हैं। वे इसे पश्चिमी संस्कृति का प्रभाव मानती हैं और माता-पिता की मर्जी से होने वाली शादी को प्राथमिकता देती हैं।
- धार्मिक प्रभाव वाले लोग: धार्मिक विचारधारा से प्रभावित लोग लिव-इन रिलेशनशिप को विदेशी संस्कृति का हिस्सा मानते हैं। वे इसे ब्रेकअप और अनैतिकता का कारण मानकर इसका विरोध करते हैं।
निष्कर्ष: क्या भारत इस बदलाव के लिए तैयार है?
लिव-इन रिलेशनशिप केवल दो लोगों का निजी मामला नहीं है; यह सामाजिक मूल्यों, पारिवारिक परवरिश, सांस्कृतिक प्रभाव, और नैतिक सोच से जुड़ा है।
- चुनौतियां: सामाजिक दबाव, नैतिक आलोचनाएं, और पारंपरिक सोच इसे स्वीकारने में बाधक हैं।
- संभावनाएं: खुली बातचीत और सही जानकारी से नई पीढ़ी की सोच में बदलाव संभव है।
भारत में यह बहस अभी भी जारी है कि लिव-इन रिलेशनशिप को स्वतंत्रता और समानता के नजरिए से देखा जाए या इसे संस्कृति और परंपरा के खिलाफ माना जाए। समाज अभी इस बदलाव को पूरी तरह स्वीकारने के लिए तैयार नहीं है, लेकिन खुली चर्चा और जागरूकता भविष्य में सकारात्मक बदलाव ला सकती है।