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Reading: तीसरा मोर्चा, नया सूत्रधार: Prashant Kishor की बिहार को बदलने की मुहिम
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Politics

तीसरा मोर्चा, नया सूत्रधार: Prashant Kishor की बिहार को बदलने की मुहिम

Ayush Soni
Last updated: October 9, 2025 2:39 pm
Ayush Soni
Published October 9, 2025
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Prashant Kishor
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प्रशांत किशोर(Prashant Kishor) का जन्म 1977 में बिहार के रोहतास जिले के कोरान सराय गांव में हुआ था। उनके पिता श्री श्रीकांत पांडेय एक डॉक्टर थे, जो बिहार सरकार के स्वास्थ्य विभाग में कार्यरत थे।

Contents
Prashant Kishor: 2011-2014 भाजपा के रणनीतिकारचाय पर चर्चारन फॉर यूनिटी2015 महागठबंधन2021 पश्चिम बंगाल चुनाव: टीएमसी (TMC) की रणनीति2021 के तमिलनाडु विधानसभाजन-सुराज2021 में प्रशांत किशोर ने अपना मिशन शुरू किया – जन सुराज

प्रशांत किशोर(Prashant Kishor) ने प्रारंभिक शिक्षा बिहार के बक्सर और पटना से प्राप्त की। हैदराबाद से इंजीनियरिंग करने के बाद उन्होंने संयुक्त राष्ट्र (UN) में आठ वर्षों तक पब्लिक हेल्थ एक्सपर्ट के तौर पर काम किया। उनका काम अफ्रीका और दक्षिण एशिया के कई देशों में विकास परियोजनाओं से जुड़ा था।

Prashant Kishor: 2011-2014 भाजपा के रणनीतिकार

2011 में वो भारत वापस आए और राजनीतिक रणनीतिकार के रूप में कार्य शुरू किया। उनका पहला बड़ा प्रोजेक्ट था – नरेंद्र मोदी का 2012 गुजरात विधानसभा चुनाव अभियान। यहाँ उन्होंने Citizens for Accountable Governance (CAG) नाम की एक टीम बनाई, जिसने पहली बार भारतीय राजनीति में डेटा, सर्वे और टेक्नोलॉजी आधारित प्रचार रणनीति का इस्तेमाल किया। इस रणनीति की बड़ी सफलता रही – मोदी सरकार भारी बहुमत से जीती और देशभर में Prashant Kishor का नाम छा गया।

प्रशांत किशोर(Prashant Kishor) ने खुद कई इंटरव्यू में बताया है कि वह UN में अच्छी-खासी नौकरी कर रहे थे, लेकिन जब 2011 के आसपास उन्हें गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यालय से संपर्क किया गया, तो उन्होंने भारत वापस आकर, समाज के लिए सीधे काम करने का फैसला किया।

उस समय उनके इस फैसले को कई लोगों ने पागलपन कहा था, क्योंकि वह एक अंतरराष्ट्रीय करियर छोड़ रहे थे। इस रणनीति की बड़ी सफलता रही – मोदी सरकार भारी बहुमत से जीती और देशभर में प्रशांत किशोर(Prashant Kishor) का नाम छा गया। 2014 में उन्होंने नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री अभियान Chai Pe Charcha, Run for Unity को डिज़ाइन किया जिसके कारण नरेंद्र मोदी ने 2014 के लोकसभा चुनावों में बहुमत हासिल की।

चाय पर चर्चा

पूरे देश में आम लोगों से सीधे जुड़ने के लिए चाय की दुकानों पर संवाद कार्यक्रम आयोजित किए गए। यह कार्यक्रम मोदी की आम आदमी की छवि को स्थापित करने और लोगों से सीधा फीडबैक लेने में सफल रहा

रन फॉर यूनिटी

सरदार वल्लभ भाई पटेल स्टैच्यू ऑफ यूनिटी के लिए देशव्यापी समर्थन जुटाने और देश की एकता पर ज़ोर देने के लिए यह दौड़ आयोजित की गई। इससे नरेंद्र मोदी को राष्ट्रीय एकता और लौह पुरुष की विरासत के उत्तराधिकारी के रूप में पेश किया गया।

2014 की जीत के बाद, प्रशांत किशोर(Prashant Kishor) ने भाजपा से अलग होने का फैसला कर लिया। उन्होंने बाद में खुलासा किया कि इसका मुख्य कारण यह था कि वह CAG की तरह एक ऐसी संस्था बनाना चाहते थे, जो सीधे प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) के लिए गवर्नेंस (शासन) के क्षेत्र में काम करे और युवाओं को जोड़े, लेकिन यह विचार भाजपा के आंतरिक इकोसिस्टम में समर्थन नहीं पा सका, जिससे तनाव पैदा हुआ और अंततः उन्होंने एक स्वतंत्र रणनीतिकार के रूप में आगे बढ़ने का फैसला किया। CAG बाद में I-PAC (इंडियन पॉलिटिकल एक्शन कमेटी) में बदल गया।

2015 महागठबंधन

2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में उन्होंने महागठबंधन के लिए रणनीति बनाई। प्रशांत किशोर(Prashant Kishor) ने 2015 में इंडियन पॉलिटिकल एक्शन कमेटी (I-PAC) बनाकर नीतीश कुमार के लिए रणनीति तैयार की। उन्होंने बिहार में बहार है, नीतीशे कुमार है, जैसे नारे को लोकप्रिय बनाया। प्रशांत किशोर(Prashant Kishor) ने लालू प्रसाद (RJD) और नीतीश कुमार (JDU) के बीच एक राजनीतिक गठबंधन बनवाने में यहां भूमिका निभाई।

उनकी बनाई रणनीति के कारण महागठबंधन को शानदार जीत मिली। इसके बाद वे बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बेहद करीबी बन गए और 2018 में JDU के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भी बने लेकिन विचारों में मतभेद और नीति को लेकर असहमति के कारण उन्होंने 2020 में JDU छोड़ दिया।

2021 पश्चिम बंगाल चुनाव: टीएमसी (TMC) की रणनीति

तृणमूल कांग्रेस (TMC) के लिए प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) की चुनावी रणनीति कंपनी I-PAC (इंडियन पॉलिटिकल एक्शन कमेटी) ने 2021 के विधानसभा चुनावों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, जिसके परिणामस्वरूप TMC ने बड़ी जीत हासिल की।

प्रशांत किशोर(Prashant Kishor) ने ममता बनर्जी को ‘बंगाल की बेटी’ के रूप में स्थापित किया और स्थानीय नेता के तौर पर पेश किया और भाजपा के केंद्रीय नेताओं को ‘बाहरी’ के रूप में पेश किया गया। इसने सरकार की जमीनी स्तर पर पहुँच को बढ़ाया और लोगों तक योजनाओं का लाभ पहुँचाकर तृणमूल कांग्रेस के प्रति सकारात्मक माहौल बनाया। लोगों को सीधे मुख्यमंत्री से जुड़ने का मौका मिला, जिससे पार्टी के आंतरिक असंतोष और स्थानीय समस्याओं को दूर करने में मदद मिली।

प्रशांत किशोर(Prashant Kishor) की कंपनी I-PAC ने बंगाल चुनाव में स्थानीय पहचान और मजबूत नेतृत्व को केंद्र में रखकर अभियान चलाया। साथ ही, सीधा जनसंपर्क कार्यक्रम शुरू किए, जिसने टीएमसी को प्रचंड जीत दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई

2021 के तमिलनाडु विधानसभा

प्रशांत किशोर(Prashant Kishor) की चुनावी रणनीति कंपनी I-PAC (इंडियन पॉलिटिकल एक्शन कमेटी) ने डीएमके के लिए चुनावी अभियान और रणनीति का प्रबंधन किया था। I-PAC की टीम ने “स्टालिन थान वरारु, विडियल् थारा पोरारु” (Stalin is coming, he will bring the dawn/new beginning) जैसे प्रभावी नारे गढ़ने में मदद की। इस रणनीति का परिणाम यह हुआ कि DMK गठबंधन ने 2021 के विधानसभा चुनाव में 159 सीटें जीतकर 10 साल बाद सत्ता में वापसी की, जिसमें अकेले DMK ने 133 सीटें जीतीं।

2021 में पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु में तृणमूल कांग्रेस और DMK को जीत दिलाने के बाद, उन्होंने चुनावी रणनीतिकार के रूप में काम न करने की घोषणा की।

जन-सुराज

2021 में प्रशांत किशोर ने अपना मिशन शुरू किया – जन सुराज

इस अभियान का सबसे बड़ा चेहरा और माध्यम जन सुराज पदयात्रा है। 2 अक्टूबर 2022 को महात्मा गांधी की कर्मभूमि पश्चिम चंपारण के भितिहरवा आश्रम से शुरू हुई। प्रशांत किशोर ने संकल्प लिया कि वह अगले 12 से 18 महीनों में लगभग 3500 किलोमीटर की यात्रा करते हुए बिहार के हर गाँव और कस्बे तक जाएँगे। इस पदयात्रा के माध्यम से उनका उद्देश्य राज्य की जमीनी समस्याओं – जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि और रोज़गार को समझना था।

2025 के बिहार विधानसभा चुनाव में प्रशांत किशोर की भूमिका पूरी तरह से बदल गई है। वह अब किसी गठबंधन के रणनीतिकार नहीं, बल्कि खुद एक सीधे राजनेता और तीसरे विकल्प के नेता हैं।

अब 2025 के विधानसभा चुनाव में उनकी भूमिका पूरी तरह से बदल गई है: वह न तो किसी गठबंधन के सलाहकार हैं और न ही किसी पार्टी के सदस्य। वह सीधे तौर पर एनडीए और महागठबंधन को चुनौती देते हुए, अपनी पार्टी के उम्मीदवारों को राज्य की सभी 243 सीटों पर उतार रहे हैं।

प्रशांत किशोर अब एक स्वतंत्र दावेदार हैं, जो दोनों प्रमुख गठबंधनों के वोट बैंक में सेंध लगाकर बिहार के राजनीतिक समीकरणों को उलटने की क्षमता रखते हैं। चुनावी पंडितों की निगाहें अब इस बात पर टिकी हैं कि क्या ‘राजनेता प्रशांत किशोर’ अपने ही पूर्व के ‘रणनीतिकार पीके’ के बनाए हुए समीकरणों को तोड़कर एक नया राजनीतिक अध्याय लिख पाते हैं।

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