कुंभ मेले का इतिहास और क्यों होता है यह महाकुंभ? जानिए कुंभ से जुड़ी हर महत्वपूर्ण जानकारी!

महाकुंभ

महाकुंभ मेले का नाम सुनते ही मन में भक्ति, आस्था और विशाल जनसमूह की छवि उभर आती है। लेकिन क्या आपने सोचा है। कुंभ मेला आखिर क्यों लगता है? इसका नाम कुंभ कैसे पड़ा? और किन तिथियों को होगा शाही स्नान? आज हम आपको बताएंगे इस भव्य आयोजन से जुड़ी हर महत्वपूर्ण जानकारी – इसका इतिहास, महत्व, और आयोजन के पीछे पौराणिक कथा के बारे में।

महाकुंभ 2025 का आयोजन इस बार उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में हो रहा है जो गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के संगम पर स्थित है। इस मेले की शुरुआत 13 जनवरी 2025 को पौष पूर्णिमा के दिन होगी और समापन 26 फरवरी 2025 को महाशिवरात्रि के पवित्र पर्व पर होगा। 45 दिनों तक चलने वाले इस महायोग में देश – विदेश से करोड़ों श्रद्धालु स्नान करने के लिए जुटने वाले हैं।

महाकुंभ 2025 में कुल 6 शाही स्नान होंगे। पहला शाही स्नान 13 जनवरी को पौष पूर्णिमा और अंतिम स्नान 26 फरवरी को महाशिवरात्रि के दिन होगा। इन स्नान पर्वों पर साधु-संतों और श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है।

यह मेला 13 जनवरी से शुरू होकर 26 फरवरी तक चलेगा वहीं आखिरी शाही स्नान 26 फरवरी को महाशिवरात्रि के दिन होगा। मान्यताओं के मुताबिक कुंभ में श्रद्धालु त्रिवेणी संगम में स्नान करके मोक्ष की प्राप्ति का प्रयास करते हैं। मान्यता है कि यहां स्नान करने से पापों से मुक्ति मिलती है।

अब जानते हैं, महाकुंभ मेले का पौराणिक इतिहास। कुंभ मेले का नाम कुंभ क्यों पड़ा?

आखिर क्या है इसका इतिहास? कुंभ का अर्थ होता है घड़ा। यह नाम समुद्र मंथन से जुड़ी पौराणिक कथा से आया है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब देवताओं और दानवों ने मिलकर अमृत के लिए समुद्र मंथन किया, तब अमृत कलश के लिए भयंकर संघर्ष हुआ था। जिस दौरान, अमृत की कुछ बूंदें प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में गिरीं। इसी कारण इन चार स्थानों पर कुंभ मेले का आयोजन किया जाता है।

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कुंभ मेले का उद्देश्य केवल स्नान नहीं है, बल्कि यह ज्ञान, भक्ति, और धर्म का महासंगम है। साधु संतों, अखाड़ों, और भक्तों का मिलन इस मेले की विशेषता है। आपको बता दें कि कुंभ मेले के तीन प्रकार होते हैं- अर्धकुंभ, पूर्णकुंभ और महाकुंभ। अर्धकुंभ हर 6 साल में हरिद्वार और प्रयागराज में होता है। पूर्णकुंभ हर 12 साल में चारों स्थानों पर आयोजित किया जाता है। और जब प्रयागराज में 12 पूर्णकुंभ पूरे हो जाते हैं, तब वहां महाकुंभ का आयोजन होता है, जो 144 साल में एक बार होता है।

आखिर ये तिथियां निश्चित कैसे होती हैं?

कुंभ मेले की तिथियां सूर्य, चंद्रमा और बृहस्पति ग्रहों की स्थिति पर आधारित होती हैं। उदाहरण के लिए, जब सूर्य मेष राशि और बृहस्पति कुंभ राशि में होते हैं, तब हरिद्वार में कुंभ मेला लगता है। महाकुंभ केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि भारत की आस्था, संस्कृति, और आध्यात्मिक परंपराओं का सबसे बड़ा उत्सव है। इस मेले में देश-विदेश से करोड़ों श्रद्धालु आते हैं, जो एकता और भक्ति की भावना को प्रकट करता है।

तो ये था महाकुंभ मेला 2025 का संपूर्ण इतिहास। हमें कमेंट में बताएं, कुंभ मेले से जुड़ी कौन-सी परंपरा आपको सबसे दिलचस्प लगती है।

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