आज 23 जुलाई 2025 को कांवड़ यात्रा का अंतिम दिन है। हरिद्वार, ऋषिकेश, गंगोत्री जैसे पवित्र स्थानों से जल लेकर निकले हुए कांवड़िए आज अपने-अपने शिव मंदिरों की ओर प्रस्थान कर रहे हैं। इसी सिलसिले में News Diggy की टीम ने उन कांवड़ सेवा शिविरों का दौरा किया, जो अब हटाए जा रहे थे क्योंकि यात्रा अपने समापन की ओर बढ़ रही है।
कांवड़ शिविरों में सन्नाटा, पर छूटते नहीं सेवा के निशान
जब हमारी टीम मौके पर पहुंची तो देखा कि जहां कुछ दिन पहले तक भक्तों की भीड़, भजन-कीर्तन और सेवा का माहौल था, वहां अब तंबू हटाए जा रहे थे। सेवा शिविरों के पंखे, गद्दे, कूलर, लाइटें और बैनर धीरे-धीरे हटाए जा रहे थे। सफाईकर्मी पूरे क्षेत्र को साफ करने में जुटे हुए थे ताकि क्षेत्र को पहले जैसा सामान्य बनाया जा सके।
सेवा में जुटे लोग: कोई वेतन लेकर, कोई नि:स्वार्थ
हमने कई सेवा करने वालों से बातचीत की। कुछ ऐसे लोग थे जो रात-दिन वहां ड्यूटी दे रहे थे, जिन्हें 500 रुपये प्रतिदिन का भुगतान हो रहा था। लेकिन कुछ लोग ऐसे भी थे जो बिना किसी स्वार्थ या पैसे के केवल सेवा भावना से वहां काम कर रहे थे। उनका कहना था कि “भोले की सेवा ही सबसे बड़ी कमाई है।”
नशा करने वालों की एंट्री नहीं
शिविर के एक संचालक ने हमें बताया कि अगर कोई कांवड़िया या आगंतुक नशे में पाया जाता है या नशीले पदार्थों का सेवन करते हुए पकड़ा जाता है, तो उसे शिविर से बाहर निकाल दिया जाता है। उनका स्पष्ट कहना था कि ऐसी हरकतें दूसरों की भक्ति भावना में खलल डालती हैं और कांवड़ यात्रा के पवित्र उद्देश्य के खिलाफ जाती हैं।
बदलती परंपराएं: अब पैदल नहीं, म्यूजिक बजाते वाहन
जहां कांवड़ यात्रा एक समय में पूरी तरह से पैदल यात्रा मानी जाती थी, वहीं अब इसमें काफी बदलाव देखने को मिल रहे हैं। हमारी टीम ने देखा कि बहुत सारे लोग बाइक, ऑटो, कार, और यहां तक कि टेंपो से भी कांवड़ ले जा रहे हैं। कई वाहन डीजे स्पीकर, म्यूजिक सिस्टम और लाइट्स से सजे हुए थे और इसमें यात्रा के स्थान पर एक तरह का मेला और एंटरटेनमेंट जैसा माहौल बन गया था।
सेवकों और शिविर संचालकों का कहना था कि आजकल के कुछ युवा भक्ति से ज्यादा “फन” के लिए यात्रा में हिस्सा ले रहे हैं, जिससे कांवड़ यात्रा की गंभीरता और अध्यात्मिकता कहीं न कहीं प्रभावित हो रही है।
निष्कर्ष
कांवड़ यात्रा आज भी करोड़ों श्रद्धालुओं के लिए आस्था और श्रद्धा का प्रतीक है, लेकिन साथ ही इसके रूप और रंग में बदलाव भी साफ देखने को मिल रहा है। सेवा शिविरों की कड़ी मेहनत, नि:स्वार्थ भाव से सेवा करने वालों का समर्पण, और कुछ लोगों की आधुनिकता की ओर बढ़ती सोच—इन सभी का मिला-जुला रूप आज कांवड़ यात्रा को एक नया चेहरा दे रहा है।
जहां एक ओर यात्रा के साथ व्यवसायिकता और मौज-मस्ती जुड़ रही है, वहीं दूसरी ओर अब भी बहुत से लोग इसे अपनी आत्मा की यात्रा मानकर पूरा करते हैं। ऐसे में ज़रूरत है कि परंपरा और आधुनिकता के बीच संतुलन बनाए रखा जाए, ताकि शिवभक्तों की आस्था हमेशा जीवित रहे और यह यात्रा केवल एक ट्रेंड बनकर न रह जाए।